________________ आगम निबंधमाला आने पर घबराना नहीं किंतु सावधानी पूर्वक आजीवन अनशन-संथारा धारण करना / इन गुणों को धारण-अवधारण करने वाला अणगार अपने संयम की सुंदर आराधना कर सकता है / निबंध-९२ बत्तीस योग संग्रह साधक के अभ्यास और विकास करने योग्य आचरण, आदर्श कर्तव्य बत्तीसवें समवायांग में कहे गये है, यथा- (1) आलोचनाअपने प्रमाद का गुरु आदि के समक्ष निवेदन कर प्रायश्चित्त ग्रहण करना। (2) निरपलाप- अन्यके आलोचितप्रमाद का अप्रकटीकरण। (3) आपत्काल में दृढधर्मता- दृढधर्मी बने रहना। (4) अनिश्रितोपधानदूसरों की सहायता लिए बिना तपस्या करना। (5) शिक्षा- सूत्रार्थ का पठन-पाठन तथा क्रिया का आचरण / (6) निष्प्रतिकर्मता- शरीर की सार-संभाल या चिकित्सा का वर्जन। (7) अज्ञातता-अज्ञात रूप मेंतप करना, उसका प्रदर्शन या प्रख्यापन नहीं करना अथवा अज्ञात कुल की गोचरी करना / (8) अलोभ- निर्लोभता का अभ्यास करना / (9) तितिक्षा- कष्ट सहिष्णुता का और परीषहो पर विजय पाने का अभ्यास करना। (10) आर्जव- सरलता। साफ दिल सरल होना / (11) शचिपवित्रता-सत्य,संयम आदिका आचरण / (12) सम्यग्दृष्टि- सम्यग्दर्शन की शुद्धि / (13) समाधि- स्वस्थ चित्त रहना, चित्त की प्रसन्नता बनाये रखना / (14) आचारोपगत- आचार का सम्यग् प्रकार से पालन करना। (15) विनयोपगत- विनम्र होना, अभिमान न करना। (16) धृतिमति- धैर्ययुक्त बुद्धि रखना, दीनता नहीं करना, धैर्य रखना। (17) संवेग- वैराग्यवृद्धि अथवा मोक्ष की अभिलाषा / (18) प्रणिधि- अध्यवसाय की एकाग्रता, शरीर की स्थिरता रखना। (19) सुविधि- सदनुष्ठान का अभ्यास / (20) संवर- आश्रवों का निरोध / (21) आत्मदोषोपसंहार- अपने दोषों का उपसंहरण, निष्कासन। (22) सर्वकाम-विरक्तता- सर्व विषयों से विमुखता। (23) प्रत्याख्यान- मूलगुण विषयक त्याग अथवा पाप त्याग / (24) त्याग- उत्तरगुण विषयक त्याग अथवा नियमोपनियम बढाना। [18