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________________ आगम निबंधमाला आदि पर बैठना, बैठने के लिये परस्पर आसन का आदान-प्रदान करना। "(12) कथाप्रबंध- साथ में प्रवचन देना / सभा में एक साथ बैठना / एक ही गच्छ के साधुओं में परस्पर ये सभी व्यवहार आवश्यक होते हैं / परिहार तप, प्रायश्चित्त वहन करने के समय तथा विशिष्ट अभिग्रह-प्रत्याख्यान वाले श्रमण गुरु आज्ञा से ये अनेक व्यवहार भी परस्पर नहीं करते हैं; वह उनका विशिष्ट तप रूप आचार होता है / ___एक गच्छ के श्रमण और श्रमणियों में भी परस्पर ये १२.व्यवहार (प्रतिपक्षी लिंग होने से) पूर्णत: नहीं होते हैं / सामान्यत: उत्सर्ग विधि से केवल 6 व्यवहार होते हैं और शेष 6 व्यवहार पहला, तीसरा, छट्ठा, नववाँ, दसवाँ, ग्यारहवाँ अपवादिक विशेष परिस्थिति से होते हैं / समाज में या क्षेत्र में प्रतिष्ठित श्रमणों के साथ 11 व्यवहार (आहार को छोडकर) ऐच्छिक विवेकपूर्वक गुरु आज्ञा से हो सकते हैं। श्रद्धाहीन,स्वेच्छाचारी, जिनशासन की हीलना करने या कराने वाले, शिथिल आचार वालों के साथ ये व्यवहार नहीं रखे जाते / किंतु मानवोचित सभ्यता का व्यवहार किया जा सकता है। निबंध-९० सत्रह प्रकार का संयम (1-5) पृथ्वीकाय आदि पाँच स्थावर / (6-9) तीन विकलेन्द्रिय और पंचेन्द्रिय इन 9 प्रकार के जीवों की मन वचन काया से हिंसा नहीं करना, इनकी यतना करना। इन जीवों को किसी भी प्रकार से बाधा-पीडा नहीं पहुँचाना।। (10) अजीव- पदार्थों का उपयोग यतनापूर्वक करना, उनको फेंकना, गिराना, टकराना आदि रूप से अयतना नहीं करना; यह अजीवकाय संयम कहलाता है। (11) प्रेक्षा- प्रत्येक वस्तु लेने, रखने में पहले देखना, खाने पीने की वस्तुएँ भी पहले देखना फिर उपयोग में लेना, यह प्रेक्षा संयम है। (12) उपेक्षा संयम- मित्र-शत्रु, इष्ट-अनिष्ट, राग-द्वेषात्मक संयोगों में तटस्थ भाव, उपेक्षा भाव रखना, कर्मबंध कारक अध्यवसाय नहीं करके उसे 180
SR No.004414
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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