________________ आगम निबंधमाला चित्त साधक को कहीं भय रहता नहीं है। वह सदा सर्वदा सर्वत्र निर्भय बना रहता है एवं संसार के समस्त छोटे बडे प्राणियों को भी वह अभयदान देकर अपने से निर्भय बना देता है / मन, वचन या काया से किसी भी जीव को संत्रस्त-भयभीत नहीं करता है। निबंध-८९ दस यतिधर्म आदि विश्लेषण दस यति धर्म- यति, मुनि, श्रमण, भिक्षु, साधु ये एकार्थक शब्द है। यहाँ यति शब्दप्रयोग से श्रमणों के 10 मुख्य धर्म-मुख्य गुण धारण करने योग्य दर्शाये हैं(१) खंति-मुनि सहनशील बनकर अपार क्षमाभाव धारण करे; स्वपर के कर्मोदय स्वभाव की विचारणा को सदा उपस्थित रखे। किसी के कोई भी अशुभ व्यवहार की कषाय भावों में समीक्षा न करे, उपेक्षा भावों से अपनी समता में लीन रहे / मन, वचन, काया तीनों को समता में संतुलित रखे। विषमता के भावों को, व्यवहारों को, उत्पन्न नहीं होने देवे, उत्पन्न होने लगे तो तत्काल ज्ञानांकशसे वैराग्यवासित अंतःकरण की विचारणा पूर्वक उस विषमता को विफल बना देवे / (2) मुत्ति-निर्लोभता। मुनि परिग्रह का सर्वथा त्यागी ही होता है, उसे संयम के अति आवश्यक मर्यादित उपकरण एवं शरीर निर्वाहार्थ अल्प आहार, वस्त्र-पात्र ग्रहण करना होता है। मकान संस्तारक अल्प कालीन ग्रहण करके छोड देना होता है / समय प्रभाव से रखी जाने वाली अध्ययन सामग्री भी विहार में भारवृद्धि न हो उतनी ही सीमित रखना होता है / अतः मुनि अल्पेच्छा, अल्प आकांक्षा वाला बनकर लोभ-लालच से मुक्त रहे, इच्छाओं को सीमित रखकर द्रव्यभाव से निष्परिग्रही बना रहे / (3) अज्जवे- आर्जव, सरलता / मुनि का मन वचन काया संबंधी समस्त योग व्यवहार सरलता, निष्कपटता से युक्त होना चाहिये / मुनि के अंदर-बाहर और कथनी-करणी सरलता से ओतप्रोत होने चाहिये / माया, कपट, प्रपंच, वक्रता, धूर्ताई आदि सरलता का नाश करने वाले अवगुणों से मुनि को दूर रहना चाहिये / (4) मद्दवे- मार्दव, नम्रता / मुनि जीवन में विनय-नम्रता गुण का होना