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________________ आगम निबंधमाला उपरोक्त 10 प्रकार की मिथ्या समझ से दूर रहे / कुल परंपरा के इन कार्यों को करते हुए फोटो, मूर्ति को जीव नहीं समझे, अजीव समझे; धूप-दीप को धर्म प्रवृत्ति नहीं समझे, अधर्म प्रवृत्ति समझे / तात्पर्य यह है कि आगारों का सेवन भी कमजोरी है ऐसा मानना चाहिये। विशिष्ट दर्जे के साधक कमजोरी हटाकर आगारों का भी त्याग करते हैं, वे श्रेष्ठ श्रावक होते हैं / किंतु वे आगार सेवन करने वालो की निंदा या तिरस्कार करे तो वह उनकी अयोग्यता है / निबंध-८८ सात भय का विश्लेषण आवश्यक सूत्र, उत्तराध्ययन सूत्र तथा प्रस्तुत सातवें समवाय में सात भय स्थान कहे हैं(१) इहलोक भय- मनुष्यको चोर, डाकू और उदंड मनुष्यों का तथा अनेक स्वार्थी, कपटी और अनार्य, क्रूर लोगों का भय होता है / (2) परलोक भय- मानव को सर्प, बिच्छु, शेर, चीता आदि हिंसक पशु-पक्षियों का, भूत, प्रेत आदि देवों का भय रहता है। (3) आदान भय- जमीन, जायदाद, धन, संपत्ति, कुटुंब, परिवार आदि अपने परिग्रह संग्रह की सुरक्षा का भय रहता है। (4) अकस्मात् भय- दुष्काल, अतिवृष्टि, जलप्रलय, अनावृष्टि, भूकंप, एक्सीडेंट का,गिरने पडने का तथा अनधारी आपत्ति रोग-महारोग का भय / (5) आजीविका भय- व्यापार-नौकरी, आवक-इन्कम का, खानपान आदि जीवन निर्वाह का भय होता है। (6) मरण भय- मरने का भय, इन्द्रिय क्षीणता, शक्ति क्षीणता का भय सभी प्राणियों को रहता है। (7) अश्लाघा भय- अपयश, अकीर्ति का भय / मानवको मान-सन्मान, यश-कीर्ति की अभिलाषा बनी रहती है। उसी कारण अपयश. बदनामी, निंदा से वह घबराता रहता है। शास्त्र में संयम को अभय कहा है। संयम की आराधना में दत्त 176
SR No.004414
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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