________________ आगम निबंधमाला बिच्छु के डंक के समाधान के लिये झाडा-फूंकना भी स्वीकारते हैं / मंत्र-तंत्र, वशीकरण आदि भी जगत में होना जैनागम मानते हैं / निमित्त ज्ञान का भी अपने स्थान पर महत्त्व होता ही है। आगम उनका भी अस्तित्व स्वीकारते हैं / सूयगडांग सूत्र में कहा गया है कि कई निमित्तज्ञान के कथन सत्य भी होते हैं और किसी का निमित्तज्ञान विपरीत भी निकल जाता है। अत: मुनि इस निमित्त ज्ञान में न पडे क्यों कि उसे तो अध्यात्म साधना ही करना होता है / आगमों में ज्योतिष शास्त्र को भी स्थान प्राप्त है / भगवान महावीर के जन्म नक्षत्र पर भस्मग्रह संयोग से 2000 वर्ष तक जिनशासन पर असर हुआ था और उस संयोग के हटने पर लोकाशाह द्वारा पुनः सत्य आचार उजागर हुआ था। इसी कारणं प्रस्तुत सूत्र में कहा गया है कि दस नक्षत्रों के चंद्र संयोग के दिन प्रारंभ किया गया शास्त्र-अध्यनन श्रेष्ठ-सफल रहता है / ज्ञान के वृद्धिकारक नक्षत्र इस प्रकार है- (1) मृगशीर्ष (2) आर्द्रा (3) पुष्य (4) पूर्वाषाढा (5) पूर्वाभाद्रपद (6) पूर्वाफाल्गुनी (7) मूल (8) अश्लेशा (9) हस्त (10) चित्रा / आगम निर्देश अनुसार नया अध्ययन इन नक्षत्र योग के समय प्रारंभ करना चाहिये / निमित्त का अपना महत्त्व है, फिर भी पुरुषार्थ एवं कर्म क्षयोपशम आदि अनेकांतिक स्वीकृति भी आवश्यक है। निबंध-८७ 10 मिथ्यात्व और समकित के आगार ... दस मिथ्यात्व- जीव को अजीव समझे, अजीव को जीव समझे, इसी तरह धर्म-अधर्म, साधु-असाधु, मोक्षमार्ग-संसारमार्ग, सिद्ध-असिद्ध के विषय में विपरीत समझ मिथ्यात्व है / फोटो तसवीर, मूर्ति आदि निर्जीव पदार्थों को कुल परंपरा से धूप-दीप, पूजा-भक्ति करना यह मिथ्या प्रवृति है, इसका गृहस्थ श्रावक को आगार होता है। ये प्रवृत्तियाँ अजीव को जीव मानने रूप मिथ्यात्व की प्रेरक होने से त्याज्य है,क्यों कि सावधानी के अभाव में इन प्रवृत्तियों में धर्म मानने के संस्कार प्रवेश कर सकते हैं / अत: श्रावक आगार सेवन लाचारी से करे तो | 175/