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________________ आगम निबंधमाला होती है तथा जब होवे तब 10 ही होवे ऐसा भी नियम नहीं है। एवं इन 10 में से ही होवे वैसा भी नियम नहीं है, अन्य भी कोई नई घटनाएँ भी हो जाती है / इन घटनाओं संबंधी निरूपण में वक्ताओं के समझभ्रम से कुछ-कुछ भिन्नताएँ प्राप्त होती है। वैसे तो कथानकों में वक्ता की वक्तव्यशैली से अंतर होना स्वाभाविक है तथापि विद्वान पाठक उपर निर्दिष्ट आगम स्थलों को ध्यान से पढकर सही तत्त्व समझने का प्रयत्न करेंगे। जिन घटनाओं के लिये आगम प्रमाण नहीं होकर व्याख्या ग्रंथों का आधार है उनके लिये व्याख्याकारों आदि के कथनशैली से यहाँ भिन्नताएँ नजर आवे तो विद्वान पाठक अपनी तर्क बुद्धि से सही आशय समझने का प्रयत्न करेंगे एवं सत्य निर्णय करने में अपनी स्वतंत्रता समझेंगे। क्योंकि आगम प्रमाण के अभाव में छद्मस्थ जिज्ञासुओं को अपने बुद्धि एवं क्षयोपशम अनुसार ही समझना अवशेष न्याय से यथोचित होता. है। जिस विषय में आगम अध्ययन स्पष्ट होवे वहाँ परंपरा का या अपनी तर्कबुद्धि का आग्रह नहीं रखकर.आगम अध्ययन अनुसार ही समझना, स्वीकारना चाहिये। निबंध-८६ नक्षत्र संयोग में ज्ञान वृद्धि प्रस्तुत स्थान के 156 वें सूत्र में शास्त्रकार ने निरूपण किया है कि 10 नक्षत्र ज्ञान की वृद्धि करने वाले होते हैं। नक्षत्र 28 हैं, उनकी भ्रमणगति चंद्र से कुछ अधिक है / अतः क्रमशः एक-एक नक्षत्र चंद्र की सीध में साथ में भ्रमण करते हुए आगे निकल जाते हैं / यो एक महीने में सभी नक्षत्र चंद्र के साथ योग करके उसे पार कर जाते हैं / दूसरे महीने में पुनः क्रमश: सभी का वही क्रम चलता है। जिस दिन आकाश में जो नक्षत्र चंद्र के साथ गमन करता है वह लौकिक पंचांग में बताया होता है। - कई लोग नेगेटीव पोइंट से चलते हुए अपने को होशियार और धर्मज्ञ समझते हैं। किंतु जैनागम अधिकतम पोजिटीव पोइंट वाले हैं। वे भूतप्रेत भी मानते है, उनके द्वारा मानव को उपद्रव होना भी स्वीकारते हैं। तेला करके देव को बुलाया जाना भी स्वीकारते हैं। आगम सांप, | 174
SR No.004414
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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