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________________ आगम निबंधमाला के लिये महान उत्पात किया था। 1 लाख योजन का राक्षसी रूप बनाया था। इस घटना को यहाँ सूत्र में चमरोत्पात कहा गया है। इसका विस्तृत वर्णन भगवती सूत्र शतक-३ में है। यह भी अनहोनी घटना हुई थी इसलिये यहाँ 10 आश्चर्य में इसे कहा गया है। (9) एक समय में उत्कृष्ट अवगाहना 500 धनुष वालों का एक साथ 108 सिद्ध होना- भगवान ऋषभदेव के निर्वाण के समय यह घटना बनी थी। भरत-ऐरावत दोनों क्षेत्र के तीर्थंकर, भरत-बाहुबली को छोडकर शेष 98 भाई तथा ऋषभदेव भगवान के 8 पौत्र ये कुल 2+98+8=108 एक सूक्ष्म समय में साथ में मोक्ष पधारे / इन सभी की अवगाहना सरीखी थी, उम्र हीनाधिक थी जो एक साथ समाप्त हो गई थी। यह गणित भी परंपरा से प्राप्त है। सामान्यतया 500 धनुष की अवगाहना वाले एक समय में उत्कृष्ट 2 ही सिद्ध हो सकते हैं। (10) असंयमी पूजा- नववें तीर्थंकर से लेकर पंद्रहवें तीर्थंकर के शासन में तीर्थ का विच्छेद हुआ अर्थात् उनके शासन काल में साधुसाध्वी की परंपरा.अविच्छिन्न नहीं चली, बीच-बीच में विच्छिन्न हुई थी। यों कुल सात तीर्थंकरों के शासन में साधु-साध्वी के अभाव में असंयतियों द्वारा धर्म चलाया गया। तब उन असंयतियों को संयती जैसा मान-सन्मान पूजा-प्रतिष्ठा का व्यवहार प्राप्त हुआ था। सामान्य रूप से हमेशा 24 तीर्थंकरों का शासन अविच्छिन्न रूप से चलता है। इस अवसर्पिणी में ही शासन विच्छेद की घटनाएँ बनी थी। इसी के अंतर्गत भगवान महावीर के शासन में भी मध्यकाल में असंयती पूजा का माहोल अनेक वर्षों तक रहा था / उसके लिये कहा जाता है कि कल्पसूत्र अनुसार भगवान के निर्वाण समय में भगवान के जन्म नक्षत्र पर भस्मराशि नामक ग्रह का संयोग था, जिसके प्रभाव से दो हजार वर्ष पर्यंत भगवान का शासन अवनतोवनत चला। फिर दो हजार वर्ष बाद पुनः उन्नतोन्नत धर्मशासन प्रवहमान हुआ था / इस अपेक्षा से दसवें अच्छेरे का प्रभाव भगवान के शासन में भी कुछ समय रहा ऐसा स्वीकार किया जा सकता है। कहा जाता है कि ऐसी अनहोनी घटनाएँ अनंतकाल में कभी अवसर्पिणी काल में हो जाती है। सदा सभी अवसर्पिणी काल में नहीं / 173
SR No.004414
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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