________________ आगम निबंधमाला . नहीं आते हैं तथापि भगवान महावीर स्वामी को 14 वर्ष की केवली पर्याय होने पर भी गौशालक द्वारा उपसर्ग हुआ था / जो पूर्व प्रश्न-१० में दर्शायी गई दसवीं आशातना और उसके परिणाम रूप बनाव बना था ।जिससे गौशालक स्वयं अपनी ही फेंकी गई लेश्या के पुनः अपने शरीर में प्रवेश करने पर सातवें दिन मर गया था और तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी 6 महीने तक उस लेश्या की झापट से तनिक रुग्ण बने रहे थे। 6 महीने बाद स्वस्थ होकर फिर साडे पंद्रह वर्ष विचरण किया था। उस विस्तृत घटना का वर्णन भगवती सूत्र, शतक-१५ में है। (2) गर्भहरणभगवान महावीर दसवें देवलोक से आयुष्य पूर्ण कर देवानंदा ब्राह्मणी के गर्भ में आये थे। वहाँ 82 रात्रि व्यतीत होने के बाद 83 वें दिन हरिणेगमेषी देव ने वहाँ से भगवान का संहरण करके त्रिशला क्षत्रियाणी के गर्भ में रखा था। यह कथन आचारांग सूत्र के भावना अध्ययन में है / (3) स्त्री तीर्थंकर- उन्नीसवें तीर्थंकर मल्लिनाथ भगवान स्त्रीशरीर में थे / मल्लिभगवती का विस्तृत जीवन वर्णन श्री ज्ञातासूत्र के आठवें अध्ययन में उपलब्ध है। शास्त्र के इस स्पष्ट वर्णन को भी दिगंबर जैन विद्वान अस्वीकार करके मल्लिनाथ भगवान को पुरुष मानते हैं यह उनकी आगम संबंधी उपेक्षा है। . (4) अभावित परिषद्- तीर्थंकर प्रभु के, प्रवचन में कोई भी व्रतप्रत्याख्यान या दीक्षा प्रसंग अवश्य होता है किंतु भगवान महावीर की प्रथम देशना-प्रथम प्रवचन में मात्र देव ही पहुंचे थे और देव कोई व्रत धारण नहीं कर सकते। अत: उसे अभावित परिषद् कहा गया है। (5) दो वासुदेवों का शंख द्वारा मिलन या कृष्ण वासुदेव का अन्य वासुदेव के राज्य की अमरकंका नगरी में जाना। यह वर्णन ज्ञातांसत्र के १६वें अध्ययन में विस्तार से किया गया है। (6) चंद्र-सूर्य अवतरणभगवान महावीर स्वामी के संथारे की अचानक ज्ञात हो जाने से व्यग्रता के कारण सम्यग्दृष्टि चंद्र-सूर्य दोनों इन्द्र अपने भ्रमणशील शाश्वत विमान सहित पृथ्वी पर पहुँच गये थे। सामान्यतया देव मनुष्यलोक में आने के लिये अपने यान-विमान से या विकुर्वित विमान से आते हैं किंतु सूर्य-चंद्र दोनों इन्द्र कार्तिक वदी अमास को एक साथ आकाश में [170