________________ आगम निबंधमाला . . * कर्मों का बंध होता है, अत: उन्हें पुण्य कार्य कहा गया है। निबंध-८३ भ.महावीर शासन के 9 जीव तीर्थंकर -- भगवान के शासन में 9 जीवों ने तीर्थंकर गोत्र नामकर्म का बंध किया था। वे सभी एक भव करके दूसरे भव में तीर्थंकर बनेंगे। उनके नाम- (1) श्रेणिक राजा (2) सुपार्श्व-भगवान के काका (3) उदायी राजा-श्रेणिक के पौत्र और कोणिक के पुत्र (4) पोट्टिल अणगारज्ञाता सूत्र में वर्णित / (5) दृढायु- सर्वानुभूति नामक पाँचवाँ तीर्थंकर बनेंगे / इनका परिचय अप्राप्त है। (6) शंख-यह भी अज्ञात है, सातवाँ तीर्थंकर बनेंगे। भगवान के प्रमुख श्रावक शंख थे, वे तो महाविदेह क्षेत्र से मुक्ति प्राप्त करेंगे / (7) शतक- इनके विषय में टीका में स्पष्ट किया. है कि पुष्कली श्रावक का ही अपर नाम शतक था। ये शतकीर्ति नामक दसवाँ तीर्थंकर बनेंगे / (8) सुलंसा- सारथी पत्नि थी / उसके सम्यक्त्व की परीक्षा करके देव ने उसे 32 गुटिका दी थी, एक साथ खाने से उसके 32 पुत्र हुए थे, वह आगामी चोवीसी में निर्मम नामक सोलहवाँ तीर्थंकर बनेगी। (9) रेवती- भगवान के लिये बीजोरापाक वहोराने वाली श्राविका थी, चित्रगुप्त नामक सत्रहवाँ तीर्थंकर बनेगी। श्रेणिक राजाने तीर्थंकर नाम कर्म बांधने योग्य दो मुख्य कार्य किये थे- (1) जीवों की दया पाली थी अर्थात् अपने राज्य में पंचेन्द्रिय जीवों के वध का निषेध कर दिया था। (2) दीक्षा की दलाली प्रेरणा करी और खुद की 23 पत्निएँ दीक्षित हुई तो भी सहर्ष स्वीकृति दे दी थी। वे नरकायु बांध चुके थे, अत: प्रथम नरक से निकल कर आगामी चौवीसी सें प्रथम तीर्थंकर महापद्म बनेंगे। उम्र, दीक्षापर्याय वगैरह सभी भगवान महावीर के समान होगी। ग्यारह गणधर, 9 गण आदि भी भगवान महावीर के समान होंगे / दीक्षा के पहले राजा होंगे, यह विशेषता होगी। तब उनके दो देव पूर्णभद्र और मणिभद्र सेवा में रहते हुए सेनाकर्म करेंगे / छद्मस्थ काल और केवलज्ञान पर्याय भी भगवान महावीर के समान होगी। परीषह-उपसर्गों की, गौशालक-जमाली की समानता नहीं कही गई है। उत्सर्पिणी के दूसरे आरे के 3 वर्ष साडे आठ | 166