________________ आगम निबंधमाला उपरोक्त सापेक्ष कथन किया गया है कि पुण्य आदि तीनों प्रकार की प्रवृत्तियों में भी दोनों प्रकार के कर्म प्रकृतिबंध होते रहते हैं। __ प्रस्तुत में पुण्य प्रवृत्तियाँ 9 प्रकार की कही हैं, यथा- (1) अन्न पुण्य-आहार की इच्छा वाले जीवों को भोजन सामग्री देना / यथाप्रदेशीराजा के समान दानशाला-भोजनशाला चलाना, हमेशा पक्षियों को दाना डालना, पशुओं को घास डालना, गाय, कुत्ते को रोटी देना इत्यादि अन्नपुण्य की प्रवृत्तियाँ है। (2) पानपुण्य- प्राणियों को पानी पिलाना, प्याउ-चलाना, पशुओं के लिये जगह-जगह पानी की कुंडिया भरवाना, दुष्काल के समय घरों में पानी पहुँचाना; इत्यादि पानपुण्य की प्रवृत्तियाँ है। (3) लयनपुण्य- मकान का दान, बेघरबार लोगों के लिये घर बनवाना या उसमें मदद करना / राहगीरों के लिये मार्ग में, जंगल में विश्रामस्थान बनाना। सामाजिक पौषधशाला या धर्म स्थानक वगैरह बनाना या उसमें मदद करना। (4) शयनपुण्य- बैठने सोने के साधनों का दान करना। बिस्तर, रजाई, कंबल, चादर, पलंग आदि का दान करना, गरीबों को बांटना / (5) वस्त्र पुण्य- पहनने ओढने के कपडे का दान, स्कूल ड्रेस, सर्दी में स्वेटर आदि का वितरण करना या घर पर मांगने आये गरीब भिखारी लोगों को नया-पुराना वस्त्र देना। (6-8) मन, वचन, काया पुण्य-जीवों के प्रति शुभ पवित्र भाव, अनुकंपाभाव, आदरभाव, अहोभाव रखना मनपुण्य है / प्राणियों को आनंद होवे वैसे मनोज्ञ एवं अनुकूल वचन प्रयोग करना / आओ, पधारो वगैरह सन्मानसूचक शब्दों का प्रयोग करना वचनपुण्य है / शरीर से रोगी, अशक्त, वृद्ध को सहयोग करना तथा मार्ग भूले हुए को साथ चलकर गंतव्य मार्ग या स्थान बता देना आदि कायपुण्य है। (9) नमस्कार पुण्य- माता, पिता, वडील को नमस्कार करना; घर में आगंतुक को, रास्ते में मिलने वाले स्नेही परिचित को नमस्कार करना, जय जिनेन्द्र कहना, सन्मान देना नमस्कारपुण्य हैं / - इन नव प्रकार के कार्यों में अनुकंपा भावों की, नि:स्वार्थ भावों की, नम्र भावों की तथा प्रेम-मैत्री भावों की आत्मा में पुष्टी होती है। ये कार्य अन्य जीवों को सुख पहुँचाने वाले हैं। जिससे मुख्य रूप से शुभ | 165/