________________ रण आगम निबंधमाला कल्पवृक्ष संज्ञा है। - मृत्यु समय में देवों के अपने अपने इन वृक्षों की, शरीर की और वस्त्राभरणों की कांति-शोभा मुरझाई हुई दिखती है अर्थात् चमक फीकी लगने लगती है / दश भवनपति के दश चैत्यवृक्षों के नाम क्रमशः इस प्रकार है-(१) अश्वस्थ(पीपल) (2) सप्तपर्ण (3) शाल्मली (4) उम्बर (5) शिरीष (6) दधिपर्ण (7) अशोक (बंजुल) (8) पलाश (9) लाल एरंड (व्याघ्र) (10) कनेर। ... निबंध-८१ रोग उत्पन्न होने के 9 कारण स्वयं मानव की गलती से, विवेक ज्ञान एवं योग्य आचरण नहीं रखने से रोगोत्पत्ति हो जाती है, इसके लिये प्रस्तुत स्थान के सूत्र-१२ . में नव कारण कहे हैं / यथा(१) भोजन की अधिकता से- भोजन की अधिकता अनेक प्रकार से हो सकती है- एक ही बार में मनपसंद वस्तु या होडाहोड में अत्यधिक खाना; शरीर, पेट की तरफ से अनेक संकेत मिलने पर भी खाते रहना; जरुरत बिना, भूख बिना, इच्छा मात्र से या अन्य की इच्छा से बारंबार खाना; एक साथ अनेकों पदार्थ-द्रव्य खाना कि जिससे कभी कोई पदार्थ विरोधी स्वभाव के भी खाने में आ जाय / अत: सीमित द्रव्य, कम मात्रा में एवं कम बार, भूख लगने पर या शरीर की आवश्यकता लगने पर खाना, यह निरोग-रोग रहित रहने का सुंदर उपाय है। (2) अधिक बैठने से या अधिक खडा रहने से- शरीर के सम्यग् संचालन के लिये अंगोपांगों का हलन-चलन होते रहना चाहिये। किसी भी एक आसन से घंटो तक ज्यों का त्यों रहने से कभी शरीर की प्रक्रियाओं का सम्यग संचालन न होने से अर्थात् उसमें अवरोध पैदा होने से अंगोपांगों में, नशों में, हड्डियों के जोड़ों में परेशानी उत्पन्न हो सकती है, अत: आसन का विवेक रखना चाहिये। (3-4) अति निद्रा, अति जागरण- स्वस्थ रहने के लिये विश्राम-निद्रा की आवश्यकता होती है, किंतु उसकी भी मर्यादा रखनी जरूरी होती है। 160