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________________ आगम निबंधमाला प्रेतात्मा के कष्ट संबंधी चिकित्सा, उपसर्ग के उपशमन शांतिकर्म आदि का वर्णन हैं / (7) क्षारतंत्र शास्त्र- इसमें भस्म, पिष्टी आदि द्वारा शारीरिक बलवृद्धि की चिकित्सा बताई है। (8) रसायन शास्त्र- इसमें रसधातु या कल्प, परपटी आदि चिकित्सा का वर्णन हैं। ये ग्रंथ वैद्यों के पास, बडे पुस्तक विक्रेताओं के पास एवं विशाल सार्वजनिक पुस्तक भंडारों में मिल सकते हैं। निबंध-८० __ चैत्यवृक्ष और कल्पवृक्ष का ज्ञान आगमों में दो प्रकार से चैत्यवृक्ष का वर्णन है- (1) तीर्थंकरों को जिस वृक्ष के नीचे केवलज्ञान-केवलदर्शन की उत्पत्ति होती है उसे चैत्यवृक्ष कहा गया है, ये 24 तीर्थंकरों के 24 चैत्यवृक्ष अलग-अलग . जाति के समवायांग सूत्र में बताये हैं / (2) प्रस्तुत में दूसरे प्रकार के चैत्यवृक्ष व्यंतर देवों की अपेक्षा कहें गये हैं। ये वृक्ष देवों के चित्त को प्रसन्न करने वाले, उनकी अपनी पसंद के अलग-अलग प्रकार के होते हैं / यथा- 1. पिशाच के कदम्ब वृक्ष, 2. यक्ष के.वट वृक्ष, 3. भूत के तुलसी, 4. राक्षस के कंडक,५. किन्नर के अशोकवृक्ष, 6. किंपुरुष के चंपक, 7. महोरग के नागवृक्ष, 8. गंधर्व देवों के तिंदुकवृक्ष / इस प्रकार यहाँ आठ व्यंतर जाति के देवों के प्रिय वृक्षों को चैत्यवृक्ष कहा गया है / ये देव मनुष्य लोक में भ्रमण करते हुए इन वृक्षों पर अल्प कालीन निवास करते हैं और मानव लोगों से अपनी कुतूहल प्रकृति का पोषण करते रहते हैं / जैसे बच्चे कुछ समयसर खेलकूद मनोरंजन के लिये क्रीडास्थानों में जाते हैं, भ्रमण करते हैं, मनोविनोद करते हैं और फिर अपने घर आ जाते हैं वेसे ही ये देव भी मानव लोक में पुनः पुनः आते रहते हैं / इन सभी देवों को अवधिज्ञान तो होता ही है किंतु अल्प सीमा वाले अवधिज्ञानी और अल्प उम्र वाले देव ही कुतूहल वृत्ति से मानवलोक में भ्रमण करते हैं अर्थात् 10-20-40-50-60-80 हजार वर्ष की उम्र वाले / अधिक उम्र वाले और अधिक सीमा के अवधिज्ञान वाले निष्कारण यहाँ मानवलोक में नहीं भटकते हैं / जैसे कि बालवय के बाद व्यक्ति खेलकूद मनोरंजन से निवृत्त हो जाते हैं और अपने [158
SR No.004414
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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