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________________ आगम निबंधमाला जिनेश्वर भाषित आगमानुमत कोई भी तत्त्व या सिद्धांत को अपनी स्वच्छंद मति से अस्वीकार करते हैं और तदनुसार प्ररूपण करते हैं, वे भी निह्नव की कोटी में गिने जाने के योग्य बनते हैं / यथा- 1. कोई कहे कि- पानी, अग्नि को जीव कहना अयथार्थ है / 2. कोई निर्जीव पानी आदि पुनः सचित्त होने की उपेक्षा करते हुए कहे कि मुर्दे भी कभी जीवित होते हैं ? अर्थात् नहीं होते / तो अचित्त पानी कभी भी सचित्त नहीं हो सकता। उसे सचित्त कहना गलत है। 3. कोई कहते हैं कि संयम साधना से केवली बन जाने पर उनको सभी धर्मतत्त्वों का ज्ञान भले मानो परंतु सारी दुनिया के कीडों को देखने गिनने की बात व्यर्थ है, सारे जगत के पापियों को देखने से क्या मतलब है, ऐसा सब खराब अच्छा जानने देखने से केवली को कोई मतलब नहीं है और वैसा सर्वज्ञ का अर्थकरना वह भी मात्र अतिशयोक्ति है, इत्यादि / आज के अपने को ज्यादा विद्वान मानने वाले आगम तत्त्वों की उपेक्षा करके स्वमति के अहं से ज्यों त्यो प्ररूपणा करे तो वह उनकी अज्ञानदशा ही समझनी चाहिये, वे लोग निह्नव की कोटि में गिने जावेंगे। वास्तव में आगम तत्त्वों को सर्वोपरी प्रामाणिक मानकर श्रद्धापूर्वक समझने का ही प्रयत्न करना चाहिये परंतु खोटी मनमानी प्ररूपणा के मीठे लुभावने चक्कर में नहीं आना चाहिये। सात निह्नवों की घटनाओं का कथानक अन्यत्र से जानना चाहिये / निबंध-७९ आयुर्वेद के आठ शास्त्र यहाँ सूत्र-३० में बताया गया है कि आयुर्वेद के आठ शास्त्र होते हैं-(१) कुमारभृत्य शास्त्र- इसमें बालकों की सार-संभाल और बालरोगों की चिकित्सा बताई गई है। (2) कायचिकित्सा शास्त्र- इसमें बुखार, कोढ वगेरे शारीरिक रोगों का, कान, नाक, मुख के रोगों का अनेकविध इलाज बताया गया है। (3) शालाक्य शास्त्र- इसमें लोह शलाका गर्म करके उसके द्वारा इलाज करने का विधान है। (4) शल्यहत्या शास्त्रइसमें शरीर में लगे तीर, भाला आदि का उपचार एवं ओपरेशन वगेरे शल्य चिकित्सा का वर्णन है। (5) जंगोली शास्त्र-इसमें सर्प, बिच्छु आदि के विष संबंधी चिकित्सा का वर्णन है / (6) भूतविद्या शास्त्र- इसमें 157
SR No.004414
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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