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________________ आगम निबंधमाला . . तक वे संलग्न आत्मप्रदेश पूंछ में रहते हैं तब तक वह हिलती है। थोडे समय बाद वे समस्त आत्मप्रदेश छिपकली के मूलशरीर में चले जाते है तब वह विभाग पूर्ण जीवरहित अजीव राशि में गिना जाता है, अत: तीसरी राशि कहना योग्य नहीं है / (7) जिस तरह 1. सूखी दिवाल पर सूखी रेत लग जाय वह शीघ्र हवा लगने आदि से दूर हो जाती है वैसे ही कुछ कर्म आत्मा को अल्प स्पर्श करते हैं वे शीघ्र नष्ट हो जाते हैं / 2. गीली दिवाल पर सूखी रेत लग जाय तो थोडे समय बाद या थोडे श्रम से निकल जाती है वैसे कुछ कर्म आत्मा को स्पर्श करते हुए बंधते है वे थोडे समय बाद कालांतर से क्षय हो जाते हैं / 3. जिस प्रकार गीली मिट्टी गीली दिवाल पर जोर से फेंकने पर चिपक जाती है और सूखने पर दिवाल से सहज नहीं निकलती है वैसे ही कुछ कर्म आत्मप्रदेशों को स्पर्श करते हुए गाढ रूप . से बंध जाते है वे दीर्घकाल के बाद स्थिति पूर्ण होने पर क्षय होते हैं। इस प्रकार सभी तरह के कर्म, स्पर्श मात्र से आत्मा के साथ लगते हैं / आत्मा के सभी प्रदेशों में एकमेक रूप से बंधते नहीं हैं, यह सातवें निह्नव का कथन है / वास्तव में कर्म आत्मा के साथ सभी प्रदेशों में एकीभूत रूप में बंध कर रहते है तथापि उनका अपना अस्तित्व अलग रहता ही है, यथा- लोहे का गोला अग्नि में तपाकर लाल-चोल कर दिया हो, लोहे के कण-कण में अग्नि एक-मेक होगई हो फिर भी यथासमय लोहा और अग्नि अलग हो सकते हैं / लोहपिंड में से अग्नि समाप्त हो जाती है वैसे ही कर्म आत्माप्रदेशों में एकमेक होकर रहते हुए भी एक समय स्थिति पूर्ण होने पर अलग हो जाते हैं और एक दिन संपूर्ण कर्मों का क्षय होकर कर्म रहित आत्मा सिद्ध स्वरूपी बन जाती है। जिस तरह कि संपूर्ण अग्नि शांत हो जाने पर शुद्ध लोहे का गोला अपने अस्तित्व में अग्नि रहित दशा में हो जाता है। इन सात निह्नवों में से जमाली, रोहगुप्त और गोष्ठामाहिल ये तीनों क्रमश: पहले छठे सातवें निह्नव जीवनभर अपने आग्रह युक्त मत में रहे थे। शेष चार निह्नवों ने किसी के द्वारा बोध पाकर आलोचना-प्रायश्चित्त करके भगवान के शासन का स्वीकार कर लिया था। आज भी जो लोग अपनी बुद्धि का या तर्क का अहं करते हुए / 156
SR No.004414
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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