SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 149
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम निबंधमाला अपने आगमज्ञान की वृद्धि एवं पुष्टि के लिये / (2) ज्ञान की वृद्धि से सम्यग् श्रद्धा की परिपक्वता पुष्टि होगी इसलिये / (3) ज्ञानमय आचार शुद्धि हेतु अर्थात् चारित्र की सम्यग् आराधना में आगमज्ञान अत्यंत उपकारक होता है। अत: चारित्राराधनार्थ भी सदा अध्ययनशील रहे / (4) शास्त्रों का विशाल ज्ञान करके उसे सम्यग् परिणमन करने वाला स्व-पर को कदाग्रह, व्युद्ग्रह से सुरक्षित करने में समर्थ बनता है और सही. मार्ग का, सही तत्त्व का, आगमाधार से युक्तिपूर्वक निर्णय करने वाला बनता है / अत: व्युदग्रह-कदाग्रह से सुरक्षित रहने के लिये एवं अन्य को रख सकने की योग्यता हाँसिल करने के लिये / क्यों कि आगमज्ञान वृद्धि, अनुभव वृद्धि से व्यक्ति अनेक उलझनों को सुलझाने में समर्थ बनता है / (5) आगमों का बारंबार स्वाध्याय, वाचना, विचारणा से वास्तविक गूढार्थ रहस्यों की उपलब्धि होती है / इसलिये साधक को निरंतर श्रुत अध्ययन में लगे रहना चाहिये / इस प्रकार इन दो सूत्रों से 10 बोलों में श्रुत अध्ययन के उद्देश्य एवं अनुपम लाभ के अनेक मुद्दे संग्रहित किये गये हैं। निबंध-७६ महीनों में 6 तिथि का घट-वध होना। प्रस्तुत सूत्र-८८, 89 में बताया है कि वर्ष में 6 तिथियाँ घटती है और 6 तिथियाँ बढती है / आगम में संवत्सर, महीने पाँच प्रकार के कहे हैं उनमें से 30 दिन का महीना और 360 दिन का वर्ष ऋतु संवत्सर की अपेक्षा होता है। इस ऋतु संवत्सर की अपेक्षा सूर्य संवत्सर में 6 दिन बढते हैं और चन्द्र संवत्सर में 6 दिन कम होते हैं अर्थात् सूर्य संवत्सर 366 दिन का होता है और चन्द्र संवत्सर 354 दिन का होता है / यह स्थल गणित से समझना। सूक्ष्म गणित से कुछ मिनट आदि न्यूनाधिक हो सकते हैं उसे परिपूर्ण 6 दिन स्वीकार लिया जाता है / - यह तिथि घट-वध का यहाँ संक्षिप्त कथन है / लौकिक पंचांग में चंद्र संवत्सर में तिथि संकलना की विधि कुछ भिन्न है। उसमें वर्ष में 14 तिथि घटाई जाती है और 8 तिथि बढाई जाती है / सरवाला [149
SR No.004414
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy