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________________ आगम निबंधमाला अमुक समय तक योग्य विवेक के साथ अर्थात् योग्य साक्षी या सूचन पूर्वक एक स्थान में या एक मकान में रह सकते हैं / प्रस्तुत प्रकरण में सूत्र-१० में उन परिस्थितियों का विवरण दिया है, यथा- (1) यदि कभी कोई अनिवार्य प्रसंगवश साधु-साध्वी का निर्जन, लंबे मार्गवाली अटवी में विहार का संयोग बन गया हो तो वहाँ एक ही स्थान-मकान में विवेक पूर्वक रहा जा सकता है। (2) कोई भी ग्राम-नगर या कोई भी छोटी बडी बस्ती में दोनों पहुँच गये हो तब वहाँ एक को रहने को मकान मिला हो और एक को प्रयत्न करने पर भी मकान नहीं मिला हो तो ऐसे समय में एक ही स्थान में दोनों साथ में रह सकते हैं / (3) विहार में कभी सूर्यास्त के समय ग्रामादि निकट में नहीं हो किंतु जंगल में ही कोई भी मंदिर, प्याऊ, धर्मशाला, स्कूल आदि एक ही स्थान हो और वहाँ पर एक के बाद दूसरे भी संध्या समय पहुँच गये हों तो उस एक स्थान में दोनों साथ में रह सकते हैं। (4) चोर लुटेरों के उपद्रव की पूर्ण शक्यता दिख रही हो तो साध्वियों के संरक्षणार्थ दोनों एक साथ ठहर सकते हैं / (5) गुंडे, बदमाशों की साध्वियों को हैरान करने की या शीलभ्रष्ट करने की शक्यता दिखती हो तो ऐसे समय साध्वियों के संरक्षणार्थ दोनों एक साथ ठहर सकते हैं। ये उपरोक्त परिस्थितियाँ अनायास उपस्थित हो जाय, अशक्य अपरिहार्य स्थिति खडी हो जाय तभी की अपेक्षा समझनी चाहिये / ऐसी घटना का फिर कभी भी अनावश्यक अनुकरण या ढर्रा-परंपरा नहीं चलाना चाहिये। जहाँ तक शक्य हो ध्रुवमार्गअनुसार साधु-साध्वी को अलग-अलग ही विहार और निवास करना चाहिये / सूत्र-११ में कहा है कि-खेदखिन्नता युक्त चित्त से, उन्मत्तचित्त से; यक्षाविष्ट पागलपन इत्यादि से युक्त श्रमण वस्त्ररहित बनकर परेशान हो रहा हो तो ऐसे समय में निग्रंथी उस निग्रंथ को अंकुश में रखे, संरक्षण करे और ऐसा करते हुए उस साधु को अपने पास-साथ रखना भी पडे तो जिनाज्ञा का उल्लंघन करने वाली नहीं कहलाती। छोटी वय, के बालक को साध्वी ने दीक्षा दी हो तो उसे भी साध्वी अपने साथ रख सकती है। यदि चित्तविभ्रम आदि से साध्वी हैरान परेशान हो तो श्रमण भी | 146
SR No.004414
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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