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________________ आगम निबंधमाला पक्ष-विपक्ष की स्थितियों का निर्माण और क्रमशः वृद्धि होती है और एक दिन गच्छ छिन्न-भिन्न हो जाता है / ___इसके विपरीत यदि- (1) आचार्य उपाध्याय अपने गच्छ में आज्ञा धारणाओं का सम्यग् संचालन करने का लक्ष्य रखे / (2) छोटे बडे में विनय वंदन व्यवहार का सम्यग्पालन करावे / (3) सूत्र-अर्थ-परमार्थकी वाचना देने-लेने की यथासमय सम्यग व्यवस्था रखे / (4) नवदीक्षित की यथार्थ सारसंभाल लेवे तथा बिमार, वृद्ध श्रमणों की सम्यग् सेवाआराधना की व्यवस्था का ध्यान रखे। (5) कभी कोई गंभीर प्रसंग, उलझन उपस्थित हो तब गच्छ में जिम्मेदारी निभाने वाले जो भी श्रमण, स्थविर हो उन्हें पूछताछ करके, सलाह-विमर्श करके विवेक पूर्वक निर्णय करे / इस प्रकार गच्छ के पदवीधरों की बुद्धिमत्ता, विचक्षणता, सम्यग् संचालन व्यवस्था से गच्छ में सुसंगठन, शांति- समाधि एवं परस्पर प्रेम-मैत्रीभाव, आत्मीयता सहानुभूति आदि की वृद्धि होती है और गच्छवासी साधकों की साधना का प्रसन्न भावों के साथ सम्यग् आराधन होता है / जिससे गच्छ का बहुमुखी विकास होता है एवं जिनशासन की महती प्रभावना होती है / - उपलक्षण से गच्छ में आचार्य-उपाध्याय के सिवाय भी अन्य पदवीधर या प्रभुत्व रखने वाले संत मनमानी करे, उपरोक्त व्यवस्थाअध्ययन, विनय व्यवहार, जिनाज्ञा का ध्यान न रखे तो भी संघ में विघटन की स्थिति पैदा होती है ।अत: गच्छ में आचार्य उपाध्याय के सिवाय अन्य पदवीधर या जिम्मेदार श्रमणों को भी सूत्रोक्त व्यवस्था संचालन की सूचनाओं का सम्यग् पालन करके अपने गच्छ की, जिनशासन की प्रतिष्ठा रखने का कर्तव्य पालन करना जरूरी बनता है। निबंध-७३ . साधु-साध्वी एक मकान में ठहरे ? . ब्रह्मचर्य की बाढ(सुरक्षा-नियम) अनुसार साधु-साध्वी सदा अलग-अलग ही विचरण करते हैं और अलग-अलग मकानों में अमुक सीमा मर्यादा से दूरी पर ही ठहरते हैं, यही ध्रुव मार्ग हैं तथापि विशेष परिस्थिति वश संयम, शील एवं अन्य सुरक्षा के निमित्त से एक रात्रि या [145/
SR No.004414
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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