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________________ आगम निबंधमाला निधान, रत्नजवाहरात, सोना चांदी, गडा-पडा देखकर विस्मित हो जाने से; इसप्रकार गंभीरता रहित विस्मित होने वाले व्यक्ति का अवधिज्ञान नष्ट हो जाता है / यहाँ आगे के सूत्र 17 में बताया है कि केवलज्ञान-केवलदर्शन उत्पन्न होने पर उपरोक्त पाँचों दृश्य देखने पर भी नष्ट नहीं होता है क्यों कि वह क्षायिकज्ञान उत्पन्न होने के बाद अविनाशी होता है तथा केवली के मोहनीय कर्म क्षय हो जाने से आश्चर्य-विस्मय-भय वगैरह उनके नहीं होते हैं। वे 'सागरवर गंभीरा' होते हैं। तात्पर्य यह कि साधक को साधना की सफलता के साथ तथा तप-संयम में घोर पराक्रम के साथ ज्ञानमय गंभीरता भी हासिल करना चाहिये / यह गंभीरता गुण ज्ञान अध्ययन एवं संस्कार वृद्धि से पुष्टतर बन सकता है, इस बात का साधक को ज्ञान एवं लक्ष्य भी रखना चाहिये / निबंध-७२ गच्छ में विघटन एवं संगठन के कारण प्रस्तुत प्रकरण में संगठन और विघटन के५-५ कारण इस प्रकार बताये हैं- (1) आचार्य-उपाध्याय अपने गच्छ में आज्ञा एवं धारणाओं का सम्यग् संचालन नहीं करे, आलस, प्रमाद, उपेक्षा करे या डरपोक वृत्ति से चले। (2) गच्छ में छोटे बडे का आपस में विनय वंदन व्यवहार का सम्यग् संचालन नहीं करे / (3) सूत्र-अर्थ परमार्थ की यथासमय यथायोग्य शिष्यों को वाचना देने की सम्यग् व्यवस्था न करे अन्य कार्यों में व्यस्त रहे, योग्य जिज्ञासु शिष्यों की जिज्ञासा, चाहना, अध्ययन लागणी की संतुष्टी नहीं करे / (4) गच्छ में बिमार, नवदीक्षित साधुओं की सेवा, सार-संभाल की सम्यग् व्यवस्था नहीं करे / (5) विचारणा करने योग्य गंभीर या विवादास्पद विषयों में गच्छ के अन्य गीतार्थ बहुश्रुत स्थविर आदि से सम्यग्सलाह-विचारणा किये बिना स्वेच्छा से ही निर्णय कर ले। इस प्रकार से आचार्य,उपाध्याय आदि पदवीधरों की कर्तव्यनिष्ठा की कमी के कारण एवं विचक्षणता-विवेक के चूक जाने से गच्छ के संगठन में, शांति-समाधि में ठेस पहुँचती है / परस्पर क्लेश विवाद 144
SR No.004414
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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