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________________ आगम निबंधमाला वैद्य- इसके 4 गण हैं- १.चतुराई से कार्य करने वाला 2. आयुर्वेद शास्त्रों का पारगामी 3. निदान करने में अनुभवी 4. शरीर से और विचारों से पवित्र अर्थात् स्वच्छ शरीर, वस्त्रादि वाला एवं रोगी के प्रति अनुकंपा भाव वाला तथा स्वार्थ या द्वेष रहित / (2) औषध- योग्य गुणसंपन्न, सुविधि से निष्पन्न, दोष (गंदगी) रहित, योग्य मात्रा में सेवन / (3) रोगी- इसके चार गुण हैं- 1. उपचार योग्य संपत्ति संपन्न 2. वैद्य पर विश्वास करने वाला 3. रोग संबंधी हकीकत स्पष्ट करने वाला अर्थात् वैद्य के सामने सही बात कहने वाला 4. योग्य धैर्य रखने वाला अर्थात् स्थिरता से उपचार कराने वाला (4) योग्य सेवा- परिचर्या करने वाले- 1. रोगी के प्रति हितैषी / 2. स्वयं के और रोगी के वस्त्र, शय्या, शरीर को स्वच्छ रखने वाले / 3. सेवा करने में चतुर / 4. रोगी के चित्त की आराधना करने में, उसे प्रसन्न रखने में बुद्धिशाली। चिकित्सक की प्रथम चौभंगी- (1) कोई व्यक्ति अपने किसी भी रोग की चिकित्सा कर सकता है (अपना अनुभवी) / (2) कोई मात्र दूसरों को दवा बता सकता है खुद के लिये घबरा जाता है कुछ नहीं कर सकता। (3) कोई सावधानी पूर्वक स्व-पर दोनों की चिकित्सा कर सकता है / (4) कोई रोगग्रस्त या अतिवृद्ध हो जाने से रिटायर चिकित्सक होता है, वह स्व-पर किसी की चिकित्सा नहीं कर सकता। दूसरी चौभंगी- (1) कोई मात्र शल्य चिकित्सा करने वाला डोक्टर होता है / (2) कोई मात्र घाव के खून आदि की सफाई करने वाला कंपाउन्डर होता है / (3) कोई दोनों काम स्वयं करता है / (4) कोई मात्र परामर्श देता है, करने वाले आसिस्टन्ट उसके अलग होते हैं। तीसरी चौभंगी- शल्य चिकित्सा और उसकी मरहमपट्टी संबंधी है / चौथी चौभंगी- शल्य चिकित्सा और घाव भरने तक की प्रक्रिया संबंधी है / तात्पर्य यह है कि कहीं अलग-अलग कार्य करने वाले अलग-अलग व्यक्ति होते हैं और कहीं अल्प काम होने से सभी कार्य एक ही व्यक्ति कर लेता है। घाव-घूमडे भी कोई चमडी से बाहर पीडा करने वाले और कोई चमडी के अंदर पीडाकारी होते हैं, इसके 4 भंग हैं। कोई में अंदर | 140
SR No.004414
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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