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________________ आगम निबंधमाला ध्वजा पताका उसी तरफ लहराती है, वैसे ही जो श्रावक अपने ज्ञान में स्थिर न रह, जैसी देशना चले उसके अनुसार ही अपनी चित्तवृत्ति बना लेते हैं, जहाँ कहीं भी झुक जाते हैं। उन्हें यहाँ ध्वजा पताका के समान कहा गया है / (3) खाणु-खेत के ट्ठे के समान श्रावक- जो श्रावक कोई भी पूर्वाग्रह में, हठाग्रह में या परंपरा की पकड में जकडे रहते हैं, ज्ञानी गीतार्थ बहुश्रुत के द्वारा सत्य तत्त्व समझाने पर भी नहीं स्वीकारते हैं / खुद को विशाल ज्ञान है नहीं और ज्ञानी की बात माने नहीं, खोटी पकड छोडे नहीं, वैसे श्रावकों को यहाँ पर पका हुआ अनाज काट लेने पर खेत में खडे छोटे छोटे ढूंठे (डींटिये) समान कहा गया है / वैसे श्रावक नम्रता रहित स्वभाव वाले होते हैं। (4) खरकंटक के समान श्रावक- जो दुराग्रही श्रावक समझाने वाले गुरु के साथ भी दुर्वचनों का व्यवहार करे, खुद की मूर्खता को समझे बिना गुरु पर दोषारोपण करे; जिस प्रकार कंटकाकीर्ण बाड के कांटे एक तरफ से निकाले जाय तो दूसरी तरफ चुभते रहते हैं ऐसे कंटक समान पीडाकारी व्यवहार करने वाले श्रावकों को यहाँ पर खर(तीक्ष्ण) कंटक समान कहा गया है / इस तरह अपनी-अपनी मानसिकता और क्षयोपशम अनुसार कोई श्रावक काच समान और 'कोई कंटक समान भी होते हैं / यह जानकर श्रावको को किस कोटि में आना है उसका निर्णय स्वयं करके सुंदर क्षयोपशम प्राप्त कर और सुंदर प्रकृति एवं मानस बनाकर काच के सदृश उत्तम श्रावक बनने का प्रयत्न करना चाहिये। निबंध-६९ चिकित्सा-चिकित्सक-व्याधि का प्रज्ञान आगम से शरीर में उत्पन्न समस्त व्याधियाँ मूल में चार प्रकार की है(१) वातजन्य-वायुविकार से उत्पन्न (2) पित्तजन्य-पित्तविकार से उत्पन्न (3) कफजन्य-कफ के विकार से उत्पन्न (4) सन्निपातिकतीनों के विकार से उत्पन्न अर्थात् उपलक्षण से वात-पित्त, वात-कफ, . पित्त-कफ और वात-पित्त-कफ यों चारों विकल्प इस चौथे भेद में समझ लेना चाहिये। चिकित्सा-उपचार की सफलता के चार अंग हैं- (1) कुशल [139
SR No.004414
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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