________________ आगम निबंधमाला विश्रांति प्राप्त करता हुआ कभी हैरान परेशान न होकर अनुपम आत्मसमाधि को प्राप्त करने वाला बन सकता है / निबंध-६८ गृहस्थ साधु पर माता-पिता होने का अधिकार जमावे साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका चारों ही मोक्षमार्ग के पथिक हैं, आत्मसाधना के साधक हैं, परस्पर साधर्मिक छोटे बडे भाई के समान हैं। साधुमहाव्रतधारी है और श्रावक अणुव्रतधारी है अत: कोई किसी पर अधिकार जमावे या किसी का तिरस्कार करे ऐसा कुछ भी किसी को भी योग्य नहीं है। साधक-साधक परस्पर एक दूसरे के सहयोगी बन सकते हैं, एक दूसरे के सहयोग से अपनी साधना को बलवती बना सकते हैं / कदाचित् किसी की साधना अल्प बलवती या हीन सत्व वाली दिखे तो अत्यंत आत्मीयता पूर्वक, परम भक्ति एवं विवेक के साथ, उसकी साधना बलवती बने वैसा सहायक बनने का प्रयत्न कोई भी कर सकता है। किसी कवि ने ठीक ही कहा है कि- मार्ग भुलेला जीवन पथिकने, मार्गचीधवा उभो रहुँ। करे उपेक्षा ए मारगनी, तो ये समता चित्त धरूँ // शैलक राजर्षि की और पार्श्वनाथ भगवान की अनेक साध्वियों की मार्गभूलित अवस्था शास्त्र में वर्णित है तथापि वहाँ कोई साधु-श्रावक के द्वारा अधिकार जमाने की बात नहीं की गई हैं / 500 साधुओं के स्वामी गर्गाचार्य ने और उस समय के श्रावको ने एक-एक साधु को अधिकार जमाकर मार-मारकर सीधा नहीं किया। अपने आपको तीर्थंकर कहते हुए भी तथा अपने को साधु मानकर भी भगवान के सामने अनर्गल प्रलाप करने वाले एवं दो साधु के हत्यारे गोशालक के उपर भी किसी ने अधिकार जमाने की या माँ-बाप होने का वादा करने की कोशीश नहीं की थी / गोशालक का भक्त अयंपुल श्रावक भी गोशालक को मर्यादाहीन प्रवृत्ति में देख कर उस पर कुछ भी अधिकार नहीं जमाते हुए स्वयं वापस घर लौटने लगा। इसलिये धर्म मार्ग में / धर्मसभा में या गुरु-शिष्य के व्यवहार में भी कोई किसी पर अधिकार ठस्सा जमाने की बात नहीं समझनी चाहिये अपितु एक दूसरे साधक की साधना में हो सके जितना सहयोगी बनना चाहिये / शक्य न हो तो | 136