________________ आगम निबंधमाला ये सभी दृष्टांत निर्वेदभाव को पैदा करके धर्मसाधना में, तप तथा संयम साधना में बलवृद्धि एवं उत्साहवृद्धि करते हैं; संसार और शरीर की आसक्ति से उपर उठने की प्रेरणा देते हैं / ये दोनों प्रकार के चारचार भंग निर्वेदिनी कथा रूप है / तत्त्व यह है कि- साधक पूर्व प्रश्न में कथित विकथाओं से सदा निवृत्त रहे और इस प्रश्नोक्त धर्मकथाओं में तल्लीन रहे / विकथाओ से अरुचि नफरत रखे और धर्मकथाओं में रस-रुचि सेवे; यही आत्मगुण विकास का, आत्मकल्याण साधना का निष्कंटक मार्ग है। निबंध-६७ व्रत पच्चक्खाण से गृहस्थ भारी या हल्के प्रश्न-गृहस्थ जीवन तो संसार की अनेक खटपटों से,जंजालों से परेशानी वाला होता है, उसमें फिर धर्म के नाम से त्याग, नियम, व्रत की जिम्मेदारियाँ डाल कर विशेष भारी बनना होता है तो शास्त्र में इन व्रतों को गृहस्थ के विश्राम स्थान क्यों बताये हैं ? , . उत्तर- जिस तरह भार वहन करने वाले की बहुत लंबी मंजिल है वह चलते-चलते एक हाथ से दूसरे हाथ में भार को पलटता है या एक कंधे से दूसरे कंधे पर उस वजन को उठाकर रखता है, तब सीधे-सीधे चलते रहने की प्रवृत्ति में यह बदलने की प्रवृत्ति भले बढती हुई दिखाई देती है फिर भी इस प्रवृत्ति में विश्राम समाविष्ट है। आगे बढ़ते हुए भारवाहक शारीरिक शंका(मलमूत्र की बाधा) होने पर कोई योग्य स्थान की गवेषणा करता है। फिर सामान को कंधे पर से उतारता है, ठीक से जमाकर भूमि पर रखता है, बाधा निवृत्ति के लिये आसपास जाता है / पुनः आकर भार को उठाकर कंधे पर जमाता है फिर चलता है तो सीधे चलते रहने में बीच में ये सारी प्रवृत्ति बढी तो भी उसकी थकान में विश्रांति अवश्य मिलती है। ठीक इसी तरह संसार के मोहमाया भरे कर्तव्यों, आरंभ-समारंभ की प्रवृत्तियों से आत्मा निरंतर कर्मबंध के भार से श्रमित होती रहती है, उसमें संतदर्शन, गुरुसांनिध्य, वीतरागवाणी श्रवण, व्रतप्रत्याख्यान द्वारा कर्माश्रव निरोध, तप-व्रत-संयम आचरणों के द्वारा कर्मों की कमी से [ 134]