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________________ आगम निबंधमाला (3) संवेगिनी धर्मकथा के 4 प्रकार हैं- 1. इहलौकिक पदार्थों, साधनों, संयोगों की असारता-विडंबना का निरूपण / 2. पारलौकिक(तीन गति संबंधी) असारता-विडंबना का निरूपण / 3. शरीर की असारताविडंबनाओं का निरूपण / 4. अन्य पदार्थों संयोगों की विनश्वरता का निरूपण / इस प्रकार की कथा-वार्ता स्व-पर में वैराग्य वासित करने वाली होने से संवेगिनी कथा कही गई है। (4) निर्वेदिनी धर्मकथा के 4 प्रकार हैं- इस कथा में पाप के दारूण परिणामों का दिग्दर्शन करवाकर संसार एवं संसार के सुखों तथा शरीर के प्रति आसक्ति हटाकर उदासीनता पैदा की जाती है / 1. इस भव में जेल की यातना, मारपीट प्राप्त करने वाले चोर, परदारगवेषी मानवों के दृष्टांतो का.कथन / 2. शिकार, पंचेन्द्रियवध, मांसाहार करने वाले, महापरिग्रही-धनसंपत्ति राज्य के स्वामी मरकर नरक के अति दारुण दु:खों को भोगते हैं, ऐसे ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती, रावण, कंस आदि के जीवन का एवं दुःखविपाक सूत्रानुसारी कथाओं का निरूपण / 3. पूर्वभवों के पापफल द्वारा गर्भ से लेकर जीवनपर्यंत दु:ख दरिद्रता भोगने वालों के जीवन का दिग्दर्शन / 4. पूर्वभवों के पापोदय से कौवे, कुत्ते, गीध तथा मद्य-मांसाहारी बनकर पुनः नरकादि भवों में दुर्गतियों की परंपरा में दु:खी होने का निरूपण / इसी प्रकार पुण्य, सत्कर्म, धर्माचरण के फल का प्रतिपादन करके त्याग-तपस्या में पराक्रम भाव जागृत किये जाते हैं, यथा-१. तीर्थंकरों को सुपात्रदान देने वाले इस भव में यशोकीर्ति, स्वर्ण मुद्राओं की वृष्टि का अपार धन प्राप्त करते हैं / 2. संयम साधना करने वाले श्रमण-निग्रंथ तपस्वी साधक संसार परित्त करके आगामी भवों में भी शीघ्र मुक्तिगामी बनते हैं। 3. पूर्व भवों में संचित पुण्यफल से जीव तीर्थंकर, चक्रवर्ती आदि की सुखसाहिबी और आत्मउत्थान के सुसंयोग को प्राप्त करता है / 4. चंडकौशिक, नंदमणियार का जीव मेढक तथा बलदेव मुनि को आहार की दलाली करके हिरण वगैरह तिर्यंच भव में पुण्योपार्जन कर देवगति के सुख सुविधामय जीवन को प्राप्त कर आगे भी आत्मकल्याण का मार्ग सुलभ करते हैं। | 133
SR No.004414
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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