________________ आगम निबंधमाला चलित करना, सत्यासत्य का भेदज्ञान होकर असत्य से हटने को तत्पर कराने वाली कथा-वार्ता चर्चा-विचारणा; यह विक्षेपिणी धर्मकथा कही जाती है। (3) जीवन में वैराग्य भावों को पैदा करने वाली, संसार से अरुचि, मोक्ष में लगन पैदा करने वाली कथा-वार्ता, चर्चा, प्रेरणा, उपदेश, अनित्य आदि चार भावना वर्णन; यह संवेगिनी धर्मकथा कही जाती है / (4) शरीर के प्रति, सुख-भोगों के प्रति उदासीनता पैदा करने वाली, पुण्य-पाप के परिणाम की चर्चा द्वारा संयम, व्रत-प्रत्याख्यान की रुचि की वृद्धि करने वाली, कष्ट-उपसर्गों के समय सहिष्णुता पैदा करने वाली कथा- वार्ता, चर्चा, प्रेरणा, उपदेश, अशुचि भावना आदि; ये निर्वेदिनी धर्मकथा कही जाती है। प्रस्तुत शास्त्र में (1) आक्षेपिणी धर्मकथा के 4 प्रकार कहे हैं१.आचार की चर्चा से अथवा आचार संबंधी विवेचना से, 2. व्यवहार कुशलता से, व्यवहार की शुद्धि से, श्रेष्ठ व्यवहार से, 3. व्यक्ति के संशयों के संतोषकारक समाधान से, ४.अनेक अपेक्षाओं से दृष्टांतों से एवं शास्त्रों के उद्धरणों से वस्तु तत्त्व के स्पष्टीकरण से व्यक्ति को या पर्षदा को शुद्ध-धर्म के प्रति आकृष्ट करने वाला वक्तव्य-उपदेश आक्षेपिणी धर्मकथा है। (2) विक्षेपिणी धर्मकथा के 4 प्रकार कहे हैं- 1. श्रोता या पर्षदा के समक्ष स्वसिद्धांत, सत्यदृष्टि, सत्य विचारणा की सम्यक् विवेचना के साथ अशुद्ध दृष्टि-विचारणा की असम्यकता के स्पष्टी करण से. 2. अशुद्ध दृष्टि, विचारणा, अन्य सिद्धांत का कथन करके सत्य तत्त्व के स्पष्टीकरण पूर्वक उसकी महत्ता दर्शावे / ३.वाद-प्रतिवाद के प्रसंग में कभी सम्यक्वाद का क्रमबद्ध कथन करके मिथ्यावाद से तुलना दर्शावे, 4. कभी मिथ्यावाद का पहले कथन करके फिर उस कथन के तत्त्वों से सम्यक्वाद के तत्त्वों की तुलना दर्शाकर सम्यक्वाद की स्थापना करे / इस प्रकार से कथा, वक्तव्य, उपदेश एवं सम्यकवाद- चर्चा करने से परिषद, श्रोता या वादी अपनी असम्यक्दृष्टि, विचारणा से चलित होकर सम्यक् विचारणा के अभिमुख बनता है। इस प्रकार विवेक और बुद्धि के साथ निरूपण करना यह विक्षेपिणी कथा है / [132]