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________________ आगम निबंधमाला का ज्ञान अनुभव स्वयं को रखना होता है और आवश्यक होने पर अन्य योग्य साधु को अनुभव ज्ञान देना होता है। भोजन संबंधी विकथा इस प्रकार है- खाद्यसामग्री के अच्छेखराब की चर्चा, पकाने की विधि-अविधि की कुविधि की चर्चा, अपने पसंद-नापसंद की रागद्वेषात्मक चर्चा,खुद के संसार अवस्था के खान-पान की चर्चा, कंजूसों के, धनवानों के, गरीबों के खान पान की चर्चा, खाद्यपदार्थों के मूल्य की चर्चा एवं उनके स्वादिष्ट होने की चर्चा / इस प्रकार की चर्चाओं में साधना का समय व्यर्थ खर्च होता है एवं रागद्वेष, आर्तरौद्र ध्यान के प्रसंग से कर्मबंध होता है / (3) देशकथा- देश विदेश, ग्राम नगरों के वशावट, रहन-सहन, वेशभूषा, खान-पान, व्यवस्थाओं, कुव्यवस्थाओं, दर्शनीय स्थानों, प्रथाओं, भाषाओं की चर्चा, निंदा, प्रशंसा, राग-द्वेषमय वाद-विवाद, यह सब देश कथा रूप है एवं कर्म बंधनकारी है / (4) राजकथा- राजाओं के गुणों-अवगुणों की, राज्य संचालन के अच्छे-खराब होने की, कायरता-शूरवीरता की, ठाठ-माठ की, ऐश्वर्य की, राजभंडार की, सैना-युद्ध की, हार-जीत की इत्यादि चर्चाएँ, निंदाविकथा, वाद-विवाद, ये परस्पर रागद्वेष वर्धक होते हैं। ऐसी कथाओं मे कभी किसी का मनदुःख होता है, कभी क्लेश, बोलचाल, झगडे भी होते हैं। ये सभी विकथाएँ धर्माचरण साधना में पूर्णत: वर्जन करने योग्य होती है / इन विकथाओं संबंधी विषयों की चर्चा के अतिरिक्त इन्हें अपने चिंतन-मनन का विषयभूत बनाना अर्थात् इन विषयों में व्यक्तिगत चिंतन विचारणा करना भी आत्मसाधक के लिये वर्ण्य समझना चाहिये। जिसका संकेत प्रश्नव्याकरण सूत्र के चौथे संवर द्वार में मिलता है। धर्मकथाओं का स्वरूप :- मोक्ष साधना में एवं आत्मगुणों के विकास में सहायक, स्व-पर हितकारक, वार्ता-चर्चा, उपदेश, विचारणा, प्रेरणा ये सभी धर्मकथाएँ कही जाती है / इसके मुख्य 4 प्रकार है- (1) जिनमत में स्वमत में स्व आत्मा को तथा अन्यों को आकर्षित करने वाली चर्चा, उपदेश, निरूपण, परूपण; वह आक्षेपिणी धर्मकथा कही जाती ह। (2) अन्य मिथ्याधर्मों से, मिथ्या सिद्धांतों से, परंपराओं से, अंधविश्वासों से, भ्रमणाओं से आत्मा को हटाना, चित्त को उसमें से [131]
SR No.004414
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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