________________ आगम निबंधमाला संज्वलन का एक लोभ मात्र रहता है, क्रोध, मान, माया वहाँ नहीं रहते हैं। उसके बाद 11 से 14 गुणस्थान में कषायोदय होता ही नहीं है, वे वीतराग कहलाते हैं। संक्षेप में अनंतानुबंधी कषाय समकित घातक, अप्रत्याख्यानी कषाय देशविरति में बाधक, प्रत्याख्यानावरण कषाय सर्वविरति रूप संयम का अवरोधक तथा संज्वलन कषाय वीतरागता में बाधक होता है। ज्ञान एवं अभ्यासपूर्वक वैराग्य भावों की वृद्धि करते हुए सभी कषायों से मुक्ति प्राप्त करना ही मोक्ष साधना का मुख्य अंग है / कषाय संबंधी यह समस्त वर्णन इस चौथे स्थान में है किंतु अलग-अलग उद्देशक या स्थलों में प्रकीर्ण रूप से उपलब्ध होता है। यहाँ उन सभी का विवरण एक साथ कर दिया गया है। . निबंध-६६ चार विकथाओं तथा धर्मकथाओं का विश्लेषण मोक्षसाधना में अर्थात् धर्मकरणी में जो कथा वार्ता नहीं की जाती उसे विकथा कहते हैं / जो आत्महित में,अनुपयोगी वार्ता होती है वे विकथा है, जिससे आत्मा में राग या द्वेष की परिणति होती है वैसी वार्ता-वार्तालाप विकथा है / विकथा के मुख्य 4 प्रकार हैं- (1) स्त्री संबंधी(पुरुष संबंधी)(२)भोजन संबंधी (खान-पान संबंधी)(३) देश संबंधी (4) राजा संबंधी। (1) स्त्री कथा- स्त्रियों के विभिन्न स्वभावों की, आदतों की, उनके कल-वंश की, चाल-चलन की, अलंकारो की, आभषणों की.शरीर के अच्छे खराब की, अंगोपांगों की, रूप-रंग की, इन्द्रियों की, सजावट की, वेशभूषा की, वस्त्रों की, बालों की इत्यादि विषयों की चर्चा, निंदा, प्रशंसा, वाद-विवाद वगेरे ये सभी वार्ता विकथा रूप हैं, आत्म साधना में इन चर्चा से कोई लाभ नहीं है / (2) भोजन-भक्त कथा- साधु को जीवन निर्वाह के लिये, आयुष्य चलाने के लिये आहार करना जरूरी है। इसलिये यथासमय भिक्षा के नियमों के पालन के साथ आहार पानी लाकर उदरपूर्ति करना जरूरी होता है उतना करना ही पड़ता है तथा स्वयं के और अन्य साथी साधुओं के स्वास्थ्य, संयम, ब्रह्मचर्य समाधि का ध्यान रखने हेतु आहार के गुणधर्म | 130