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________________ आगम निबंधमाला श्रावक के तीन मनोरथ :- श्रमणोपासक आजीवन 12 व्रत धारण करता है, उसमें सामान्य-विशेष आरंभ-परिग्रह की सीमा रखता है। क्यों कि गृहस्थ जीवन में और वर्तमान की उन परिस्थितियों में वह संपूर्ण त्याग नहीं कर सकता है, इसीलिये देशव्रती बनता है / तथापि श्रावक-श्राविकाओं को अपने नित्य-नियम के समय इन तीन मनोरथों का अवश्य चिंतन करना चाहिये और आत्मा को उन भावनाओं से भावित करते रहना चाहिये / यथा- (1) पारिवारिक वारसदार पुत्र, पुत्रवधु आदि घर (कुटुंब)व्यापार की जिम्मेदारी संभालने के योग्य होने पर मैं सांसारिक जिम्मेदारियों से मुक्त बनकर, निवृत्तिमय जीवन बनाकर अधिकतम समय संवर, पौषध, त्याग, व्रत, नियम, तपस्या आदि में व्यतीत करूँ और आत्मा को अधिकतम धर्मभावना में लगा करके, आश्रवद्वारों का अधिकतम त्याग करके, संवर निर्जरामय जीवन जीतूं। हे भगवन् ! ऐसा शुभ संयोग, शुभ अवसर, शुभ घडी मुझे यथा शीघ्र जीवन में प्राप्त होवे (2) शारीरिक शक्ति स्वास्थ्य के अनुकूल समय में सर्व संयोगों को अनुकूल बनाने का प्रयत्न, अभ्यास करते हुए मानव जीवन में एक दिन सर्व विरति रूप मुनिधर्म अंगीकार करूँ, दीक्षा लेकर आत्म कल्याण साधना में पूर्णतया अवशेष जीवन को लगा दूँ / हे भगवन् ! ऐसा शुभ संयोग मुझे शीघ्र प्राप्त होवे कि मैं उत्कृष्ट वैराग्य से भावित होकर घर, कुटुंब, संपत्ति का मोह ममत्व छोडकर गुरु चरणों में जीवन अर्पित करके अणगारधर्म को स्वीकार करूँ (3) साधु के संलेखना संथारा ग्रहण करने के तीसरे मनोरथ के समान यहाँ श्रावक के लिये भी संलेखनासंथारा युक्त पंडितमरण की प्राप्ति का मनोरथ समझ लेना चाहिये। शंका- श्रावक के द्वारा आजीवन-चौविहार संथारा कर लेने पर वह संपूर्ण पापों का और आहार का तीन करण,तीन योगसे त्यागी हो जाता है तो उसे साधु ही क्यों नहीं समझा जाय? समाधान- उसके संयम ग्रहण के परिणाम नहीं होते हैं / उसकी लघुनीत, बडीनीत, वस्त्र परिवर्तन, शरीर की देखरेख-सारसंभाल गृहस्थ करते हैं। दीक्षा लेने पर या छट्ठा-सातवाँ गुणस्थान प्राप्त करने पर गृहत्याग, गुरुनिश्रा ग्रहण, साधु-समुदाय की स्वीकृति, गृहस्थ परिचर्या का त्याग, रात्रि में स्त्री प्रवेश [ 122
SR No.004414
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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