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________________ आगम निबंधमाला लीन-एकाग्र बनने का प्रयत्न करना (3) खुद की शांति एकाग्रता कायम रख सकने के योग्य प्रकृति या अभ्यास न होतो वहाँ से अपने को अलग कर लेना अर्थात् अन्यत्र चले जाना, अन्य के साथ विहार करंना या एकांत-एकत्व का सेवन करना; ये क्रमिक आत्मसुरक्षा के, आत्मा को कर्मबंध से और संयम को संकल्प-विकल्पों से सुरक्षित रखने के उपाय निबंध-५८ देवों का मनुष्य लोक में आना या नहीं आना __देवों की मनुष्य लोक में आने की इच्छा होते हुए भी वे तीन कारणों से नहीं आ सकते, यथा- (1) वे दिव्य सुखों मे गृद्ध आसक्त हो जाते हैं और उन्हें मानुषिक आकर्षण नहीं रहता है जिससे वे यहाँ आने का संकल्प या निर्णय नहीं करते हैं / (2) उन देवों का वहाँ की आसक्ति के कारण यहाँ के लोगों का प्रेम संबंध नष्ट हो कर दिव्य प्रेम में संक्रांत हो जाता है / (3) दिव्य सुखों में लीन कोई देव अभी जाता हूँ, थोडी देर से जाता हूँ यो संकल्प करते-करते भी यहाँ के. लोगों का आयुष्य पूर्ण हो जाता है और उनका आना नहीं हो पाता है। तीन कारणों से देवों का मनुष्य लोक में आना हो सकता है- (1) दिव्य सुखों में अनासक्त कोई देव को इस प्रकार विचार होता है कि मनुष्य लोक में मेरे उपकारी आचार्य आदि गुरु भगवंत हैं जिनके प्रभाव से मैंने यह रिद्धि प्राप्त करी है. तो मैं जाऊँ और उनको वंदन नमस्कार करूँ, उनकी पर्युपासना करूँ। (2) किसी अनासक्त देव को ऐसा संकेत होता है कि मनुष्य लोक में विशिष्ट ज्ञानी, तपस्वी एवं दुष्कर साधना करने वाले महर्षि हैं, तो मैं जाऊँ और उन गुरु भगवंतो का वंदन नमस्कार करके उनकी पर्युपासना करूँ। (3) किसी देव को ऐसे विचार होते हैं कि मनुष्य लोक में मेरे माता-पिता, भाई, भगिनी, भार्या, पुत्र आदि हैं तो मैं जाऊँ और उन्हें अपनी दिव्य ऋद्धि बताऊँ / इस प्रकार मनुष्य लोक के आकर्षण से कोई देव यहाँ आ सकते हैं। . - इसके अतिरिक्त चोथे स्थान में एक-एक कारण अधिक है यथा- (1) मनुष्य लोक संबंधी गंध 400-500 योजन ऊँचे तक फैली [ 116
SR No.004414
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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