________________ आगम निबंधमाला हुई रहती है। उस गंध के कारण भी देवता नहीं आते हैं। (2) अपने पूर्व भव के मित्र, गुरु, शिष्य आदि के साथ प्रतिज्ञाबद्ध हो तो उसे प्रतिबोध देने के लिये देव आते हैं / इसी के उपलक्षण से किसी के द्वारा अत्यधिक स्मरण, जाप-तप युक्त भक्ति करने पर देव का अंगस्फुरण होने से भी वे मनुष्य लोक में आते हैं और मित्र स्नेही या भक्तिवान का उद्देश्य पूर्ण करके चले जाते हैं। यहाँ तीन की संख्या के कारण तीन तीन कारण कहे है, चौथे स्थान में इन तीन सहित एक- एक अधिक कहा है अत: कुल चार-चार कारण आने-नहीं आने के यहाँ दर्शाये गये हैं। निबंध-५९ साधु को तपस्या में धोवणपानी कल्पे इस शास्त्र में यहाँ पर तथा कल्पसूत्र के आठवें अध्याय के मूलपाठ में स्पष्ट बताया गया है कि तपस्या में धोवणपानी लेना और पीना कल्पता है। इन दोनों शास्त्रों में कुल 9 प्रकार के धोवण पानी के नाम कहे गये हैं। अत: कोई भी बहुमत से या परंपरा के नाम से साधु को धोवण पानी लेना पापमय बताकर निषेध करे तो यह उनका मनमाना शास्त्रविपरीत बोलना-प्ररुपणा करना होता है। यहाँ बताये गये 9 प्रकार के धोवण पानी इस प्रकार है- (1) आटे के बर्तन धोया हुआ पानी (2) उबाले हुए केर, मेथीदाणा, भाजी आदि का धोया हुआ पानी (3) चावल धोया हुआ पानी (4) तिल आदि को धोया हुआ पानी (5) दाल वगेरे धोया हुआ पानी (6) जौ, गेहूँ वगेरे धोया हुआ पानी (7) छाछ के उपर का पानी अर्थात् छाछ का आछ (8) गर्म पदार्थों को पानी में रखकर ठंडा किया हो वैसा पानी (सोवीरोदक) (9) राख, लविंग आदि से अचित्त बनाया हुआ पानी(शुद्धोदक)। . प्रस्तुत में उपवास में पीने के नाम से तीन, बेले में पीने के नाम से तीन और तेले में पीने के नाम से तीन धोवणपानी कहे हैं तथापि इन धोवणपानी का परस्पर विचार करने से यह सहज स्पष्ट होता है कि, तीन की संख्या के कारण यह विभाजन युक्त कथन है। वास्तव में सभी प्रकार के शुद्ध-निर्दोष पानी तपस्या में या बिना तपस्या में साधु-साध्वियाँ ग्रहण कर सकते हैं।