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________________ आगम निबंधमाला अधिक उम्र तक भी योग्य समझ से वंचित रह जाता है / इसलिये यहाँ शास्त्र में एकांत आग्रह नहीं दर्शाते हुए अनेकांतिक कथन किया गया है कि- तीनों अवस्था में अर्थात् बचपन, जवानी और बुढ़ापे में यों कभी भी भावना और योग्यता हो तो व्यक्ति धर्माचरण यावत् संन्यास-दीक्षा अंगीकार कर सकता है तथा उसे केवलज्ञान तक भी प्राप्त हो सकता है / यहाँ तीनों अवस्थाओं को तीन याम कहा गया है / बचपन अवस्था 16 वर्ष तक, 17 वर्ष से 40 वर्ष तक युवावस्था और उसके बाद प्रौढ एवं वृद्ध अवस्था है / दूसरे प्रकार से तीन वय कही है- प्रथम, मध्यम और पश्चिम। इसमें 30 वर्ष तक प्रथम, 60 वर्ष तक मध्यम और आगे 90-100 वर्ष तक पश्चिम वय समझना। वय में संपूर्ण उम्र के तीन विभाग कहे हैं और जामा शब्द से जीवन की तीन अवस्थाएँ कही गई है। सार यह है कि मानव जीवन की किसी भी अवस्था में (बाल्य, युवा आदि) और किसी भी वय(प्रथम,मध्यम,पश्चिम) में धर्माचरण एवं दीक्षा अंगीकार की जा सकती है, क्यों कि- प्रत्येक मानव की मृत्यु अनिश्चित्त है और योग्य समझ पूर्वभव के संचित कर्म अनुसार होती है / तथापि व्यवस्था की दृष्टि से 9 वर्ष के बाद योग्यता हो तो किसी को भी दीक्षा दी जा सकती है। अंत में 1 दिन या एक घडी भी उम्र बाकी हो और व्यक्ति की योग्यता हिम्मत हो तो उसे जैन दीक्षा दी जा सकती है। इसमें आगम-शास्त्रों से कोई विरोध नहीं आता है। प्रतिप्रश्न- 9 वर्ष में दीक्षा देने की बात गले उतरने जैसी नहीं है अत: 18 वर्ष पहले किसी को दीक्षा नहीं देने का नियम होना चाहिये। उसके पहले कच्ची उम्र में लेने से बाद में संयम-ब्रह्मचर्य का पालन नहीं हो सकने से समाज में बहुत निंदा और टीका-टीपणी होती है, तो उचित क्या है? समाधान- अपनी छद्मस्थ बुद्धि से ऐसा एकांत मान लेना उचित नहीं है तथा ऐसा मानने में सर्वज्ञों के विधान की अवहेलना आशातना भी होती है। वास्तव में छद्मस्थ साधक किसी के भी वर्तमान गणों से उसकी योग्यता का परिक्षण कर सकते हैं और परस्पर परामर्श करके निर्णय कर [ 114]
SR No.004414
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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