________________ आगम निबंधमाला सन्मार्ग में जोडकर संसार प्रपंच से, दुखों से उन्हें मुक्त करा सकते हैं, संसार समुद्र को तिरने का मार्ग बता सकते हैं अत: इन्हें तीर्थ कहा गया है। वे चारों भावतीर्थ हैं। प्रस्तुत में तीन की संख्या के आधार से हमारे भरत क्षेत्र में तीन तीर्थस्थान कहे हैं / मागध, वरदाम और प्रभास,ये उन तीन तीर्थों के नाम हैं। उन तीर्थ स्थानों से लवण समुद्र के जल में प्रवेश किया जाता है, इस मार्ग से आगे जाने पर मागध, वरदाम, प्रभास नामक देवों के भवनरूप तीर्थस्थान हैं, जो जल से घिरे हुए जल मध्य स्थित है, इन्हें ही अपेक्षा से तीर्थ (द्रव्य तीर्थ) कहा गया है / ऐसे तीन तीर्थ एरावत क्षेत्र में, महाविदेह क्षेत्र की सभी विजयों में तथा जंबूद्वीप के समान घातकी खंड द्वीप और पुष्करार्ध द्वीप में भी ये तीन-तीन तीर्थस्थान है। यों कुल मिलाकर ढाई द्वीप में 510 तीर्थों का कथन प्रस्तुत सूत्र में किया गया है। इस प्रकार इस स्थानांगसूत्र अनुसार द्रव्यतीर्थ स्थान- 510 है और भावतीर्थ 4 है। वर्तमान में जैनों में अनेक तीर्थस्थान पर्यटन की अपेक्षा प्रसिद्ध है, जिनका हमारे इन आगमों में तीर्थ रूप में कहीं भी कथन नहीं मिलता है। . निबंध-५६ चौथा सन्यासाश्रम है तो जैन दीक्षा कब मानव जीवन में धर्माचरण और आत्मकल्याण करने का अनुपम अवसर होता है और मानव की मृत्यु का कोई निश्चित्त समय नहीं होता है। अत: योग्य समझ, विवेक-बुद्धि होने के बाद मानव कभी भी धर्म का आचरण और संन्यास-संयम स्वीकार कर सकता है। योग्य समझ भी व्यक्ति के पूर्व भव के संचित कर्मों के अनुसार होती है। किसी को गर्भ में भी योग्य समझ होती है, किसी को 4-5 वर्ष की उम्र में तथा किसी को 8-9 वर्ष की उम्र में योग्य समझ हो सकती है। फिर भी बहुलता को ध्यान में रखते हुए जैनागमों में गर्भकाल सहित नव वर्ष एवं उससे अधिक वय वाले को धर्म के आचरण तथा संन्यास ग्रहण के योग्य कहा है। यह एक मर्यादा रूप, व्यवस्था रूप विधान है। कदाचित् कोई इस से पहले भी योग्य हो सकता है (वज्रस्वामी-एवंताकुमार) और कोई [113]