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________________ आगम निबंधमाला . बना जाता है, उसे यहाँ भट्टो-स्वामी-मालिक कहा गया है। व्यक्ति के जीवन निर्वाह में या आजीविका निर्वाह में, सुखी जीवन व्यतीत करने में उस स्वामी का मुख्य भाग होता है। अत: माता-पिता के बाद दूसरा उपकारी व्यापारिक स्वामी को, व्यापार कार्य में होशियार करने वाले को कहा गया है / (3) तीसरे नंबर में संसार से तिरने का मार्ग दिखाने वाले और दीक्षा देने वाले धर्मगुरु धर्माचार्य का उपकार स्वीकारा गया है और इनका ऋण स्वीकारा गया है। ____ इस ऋण से मुक्त होने के विषय में यह समझाया गया है कि तन मन से अर्पणता पूर्वक सबकुछ न्योछावर करते हुए इन तीनों की शारीरिक सेवा की जाय, इन्हें हर तरह से सुखशांति पहुँचाई जाय वह भी जीवनभर, तो भी पूर्ण रूप से ऋण से उऋणता नहीं हो पाती अर्थात् इतना महान उपकार और ऋण इनका माना गया है / अंत में उऋण होने का एक उपाय प्रसंग बताया गया है कि ये माता-पिता और स्वामी, धर्म में उपस्थित न हों तो उन्हें वीतराग धर्म में जोडने से और धर्म की सच्ची आराधना कराने में पूर्ण मददगार या प्रेरक बनने से इनके ऋण सेसच्चा और पूर्ण उऋण बना जा सकता है। यदि ये धर्म को प्राप्त हो गये हो और कोई भी कारण से श्रुत-चारित्रधर्म से उनकी आस्था डोलायमान हो, धर्माचार्य भी उदयकर्म से धर्म में डावाडोल चित्त या सुस्त चित्त बने हों तो ऐसे समय में विवेक तथा बुद्धिमानी पूर्वक इन्हें धर्म में स्थिर करके मोक्षमार्ग के आराधक बनाने में पूर्ण प्रयत्न कर, सफलता प्राप्त कर ली जाय तो इन तीनों के उपकार का सच्चा बदला चुकाया जाना गिना जायेगा। निबंध-५५ तीर्थों का विश्लेषण आगमाधार से द्रव्य तीर्थ और भाव तीर्थयों दो प्रकार के तीर्थ समझे जा सकते हैं / भावतीर्थ का अर्थ होता है जिनके माध्यम से अर्थात् सुसंगति से संसार सागर से तिरा जाता है। भावतीर्थ इस सूत्र के चौथे स्थान में आगे चार की संख्या में बताये हैं / वहाँ साधु-साध्वी और श्रावक- श्राविका इन चारों को तीर्थ कहा गया है / ये अपने ज्ञान से जीवों को बोध देकर, | 112
SR No.004414
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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