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________________ आगम निबंधमाला लोगंधकार कहा है और उसके साथ के सूत्र में लोकुद्योत भी कहा है। उसका भी तात्पर्य यही है कि प्रासंगिक क्षेत्रों में निर्वाण समय में देवों के आगमन का द्रव्य प्रकाश होता है और शासनप्रेमी धर्मनिष्ठ आत्माओं के लिये भावांधकार भी होता है। तीर्थंकरों से और ज्ञान से, धर्म से संबंधित इस अंधकार के लिये द्रव्य अंधकार कहीं भी नहीं समझकर मात्र भाव अंधकार ही समझना चाहिये / नारकी जीवों के क्षणिक सुख का कथन शास्त्र में आता है, उसे भी इस लोकप्रकाश से संबंधित किया जाता है किंतु उस क्षणिक सुख का संबंध तो देवों के नरक में जाने के निमित्त से समझा जा सकता है। उसके लिये प्रस्तुत प्रकाश के कथन को आखा लोक में मानना जरूरी नहीं होता। सूत्रोक्त तीन प्रसंगों पर इन्द्र, सामानिक,त्रायत्रिंशक, लोकपाल, अग्रमहिषी देवियाँ, परिषद के देव-देवी, अनिकाधिपति, आत्मरक्षक देव भी आते हैं। इसके सिवाय लोकांतिक देव भी पाँचवें देवलोक से इन तीनों प्रसंगों पर आते हैं। मुख्य रूप से लोकांतिक देव तीर्थंकर के दीक्षा के पूर्व आकर, अपना जीताचार निभाते हुए भगवान से दीक्षा हेतु प्रेरणा वाक्य बोलकर, भगवान के दीक्षा के भावों का बहुमान करते हैं ऐसा प्रसिद्ध है / तथापि प्रस्तुत सूत्रानुसार वे जन्म, दीक्षा और केवलज्ञान आदि प्रसंग पर भी उपस्थित होते हैं। इन तीनों प्रसंगो पर देवों के(इन्द्रों के) अंगस्फुरण होता है, व सर्व कार्य छोडकर उठ जाते हैं, उनके चैत्यवृक्ष भी चलित-स्फुरित होते हैं / इन प्रसंगो पर खुशी में आकर देव सिंहनाद करते हैं, चेलुक्खेवे- ध्वजाएँ भी फहराते हैं / निबंध-५४ . लोक में उद्योत अंधकार का तात्पर्य प्रस्तुत में मानव के जीवन में तीन का महान उपकार स्वीकारा गया है। तीन की संख्या का प्रकरण होने से (1) माता-पिता को एक साथ में कहकर उनका उपकार स्वीकारा गया है। (2) संसार में जीवन यापन के लिये आजीविका, एक बड़ा प्रश्न है। जो कोई भी व्यक्ति व्यापार में मदद करता है, जिसके नेतृत्व में रहकर व्यापार की कला में पारंगत | 111]
SR No.004414
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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