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________________ आगम निबंधमाला जिसका जितना जैसा प्रसंग हो वैसा अर्थ समझा जाता है। . ठीक उसी तरह लोक उद्योत और लोक अंधकार भी अपेक्षा से समझे जा सकते हैं / लोक में जहाँ देवों का आगमन होता है, जिस मार्ग से देव या देव विमान निकलते हैं वहाँ पर प्रकाश हो जाता है। क्यों कि आगे के सूत्र में ही उसका स्पष्टीकरण आ जाता है कि देवुज्जोए सिया-देव संबंधी उद्योत होता है / लोक का अर्थ है हमारे इस मनुष्य लोक में / लोक से पूरा लोक अर्थ का आग्रह करने पर अनेक सूत्र पाठों के अर्थ में दुविधा पैदा होती है / तीर्थंकरों के ऐसा कोई उद्योत नाम कर्म भी शरीर में नहीं होता है कि जो पूरे लोक में चमक-प्रकाश करे / खुशी में आकर देवता प्रकाश करे तो वे भी पूरे लोक में ऐसा नहीं कर सकते, अमुक सीमित क्षेत्र में ही देवता प्रकाश, वर्षा, बिजली, गर्जना, कोलाहल, सिंहनाद आदि कर सकते हैं। ___ यहाँ जो अंधकार होने का कथन है वह तो एक मात्र भाव अंधकार की अपेक्षा ही समझना चाहिये, वह भी एक देश में अर्थात् सीमित क्षेत्र की अपेक्षा समझना चाहिये / क्यों कि पाँच महाविदेह क्षेत्र की 160 विजयों में पूर्वो का ज्ञान, जिनशासन, धर्म और अनेक तीर्थंकर केवली, द्वादशांगधारी, पूर्वधारी होते ही हैं / अत: लोक से हमारा यह भरतक्षेत्र, उसमें भी तीर्थंकर की नगरी और आने वाले देवों का प्रकाश जहाँ जहाँ तक पहुँचता है, जिधर से वे गमनागमन करते हैं वह क्षेत्र समझना चाहिये / तीर्थंकर के जन्म, दीक्षा, केवलज्ञान के समय पूरे लोक में प्रकाश होना मानकर नरक सहित 14 राजलोक प्रमाण में द्रव्य प्रकाश होना मानना, बिना सूक्ष्मतम विचारणा से एवं आगम में प्रयुक्त शब्दों के प्रासंगिक अर्थ की अपेक्षा को ध्यान में लिये बिना अनुपयोग से तथा अतिशयोक्ति के मानस से चलाई गई परंपरा समझनी चाहिये। अत: लोगुज्जोए-लोक में उद्योत अर्थात् प्रासंगिक क्षेत्र में द्रव्य प्रकाश अर्थ समझना पर्याप्त और समाधान युक्त होता है। लोक में अंधकार का यहाँ तीन कारणों से जो भी कथन हैं वह द्रव्य अंधकार का विषय नहीं है, उसमें भाव अंधकार अर्थ करना / 109
SR No.004414
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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