________________ आगम निबंधमाला (3-4) धरणेन्द्र-भूतानेन्द्र (5-6) वेणुदेव-वेणुदाली (7-8) हरिकंतहरिस्सह, (9-10) अग्निसिंह-अग्निमाणव (11-12) पूर्ण-विशिष्ट (13-14) जलकांत-जलप्रभ (15-16) अमितगति-अमितवाहन (17-18) वेलंबप्रभंजन (19-20) घोष-महाघोष / वाणव्यंतर देवों के बत्तीस इन्द्र :- वाणव्यंतर के पिशाच आदि आठ और आणपन्नी आदि आठ यों 16 जाति है / इन 16 जाति में उत्तर दिशावर्ती और दक्षिण दिशावर्ती दो-दो इन्द्र होने से कुल 32 इन्द्र होते हैं, यथा-पिशाचादिके- (1-2) काल-महाकाल (3-4) सरूप-प्रतिरूप (5-6) पूर्णभद्र-माणिभद्र (7-8) भीम-महाभीम (9-10) किन्नर-किंपुरुष (11-12) सत्पुरुष-महापुरुष (13-14) अतिकाय-महाकाय (15-16) गीतरति-गीतयश / आणपन्नी आदि के-(१७-१८) सन्निहित-सामान्य (19-20) धाताविधाता (21-22) ऋषि-ऋषिपालक (23-24) ईश्वर-महेश्वर (25-26) सुवत्स-विशाल (27-28) हास्य-हास्यरति (29-30) श्वेत-महाश्वेत (31-32) पतंग-पतंगगति / ज्योतिषी देवों के दो इन्द्र- चंद्र और सूर्य / वैमानिकदेवो के 10 इन्द्र(१) सौधर्मेन्द्र (2) ईशानेन्द्र (3) सनत्कुमारेन्द्र (4) माहेन्द्र (5) ब्रह्मलोकेन्द्र (6) लांतकेन्द्र (7) महाशुक्रेन्द्र (8) सहसारेन्द्र (९)प्राणतेन्द्र (10) अच्युतेन्द्र। देवलोक 12 है तथापि इन्द्र 10 है, क्यों कि नववें दसवें देवलोक का सम्मिलित एक ही इन्द्र-प्राणतेन्द्र है / उसी तरह ग्यारवें बारहवें का सम्मिलित एक ही इन्द्र अच्युतेन्द्र है / नवौवेयक और पाँच अणुत्तर विमान में सभी इन्द्र ही है, उन्हें अहमेन्द्र कहा गया है। अतः उनकी गिनती 64 इन्द्रों में नहीं की गई है। निबंध-५२ तारे टूटने का अर्थ तारा टूटना यह एक लोक व्यवहार भाषा का कथन मात्र है। आगम में तारा रूवा चलेज्जा ऐसा पाठ भाषा के विवेक के साथ है। जिसका अर्थ है- तारा जैसे रूप में आकाश में कुछ चलता है, चलते हुए देखा जाता है / ऐसा दिखना तीन प्रकार से होता है- (1) कोई देव | 107