________________ आगम निबंधमाला श्रावक बनकर अंत में संलेखना संथारा युक्त श्रावक धर्मपालन का लक्ष्य रखना चाहिये। श्रावकधर्म पालन करने के साथ क्षमता बढाकर या संयोग, अवसरों को सुधारकर अणगार धर्म स्वीकारने का लक्ष्य भी रखना चाहिये और उसमें सफलता मिल जाने पर उत्साहपूर्वक अणगार धर्म धारण कर लेना चाहिये। फिर उसकी आगमानुसार आराधना में तत्पर बन जाना चाहिये, यही यहाँ बताये गये द्विविध धर्म का सार है तथा ज्ञान और चारित्र दोनों के सेवन से मुक्ति कहने का सही तात्पर्य है। अत: जो जिनधर्म स्वीकारने का संतोष करके भी श्रावक व्रतों में आगे बढ़ने का, व्रत-प्रत्याख्यान बढाने का अथवा संयम लेने का उद्देश्य ही नहीं रखते, व्रत प्रत्याख्यान वृद्धि एवं संयम ग्रहण का कोई विशेष महत्त्व ही नहीं स्वीकारते है तो आगम के इस द्विविध धर्म वर्णन से एवं ज्ञान और चारित्र से मुक्ति होने के वर्णन से उनकी वह विचारणा बराबर नहीं है, परिपूर्ण नहीं है.। मोक्षमार्ग की आराधना में ज्ञान, दर्शन,चारित्र (श्रावकपन या साधुपन) तथा तप(आभ्यंतर- बाह्य दोनों) चारों की सुमेलपूर्वक आवश्यकता समझनी चाहिये / निबंध-५१ 64 इन्द्र संबंधी ज्ञान यहाँ दो-दो बोल का कथन होने से दो-दो इन्द्रों का कथन करते . हुए चारों जाति के देवों के कुल 64 इन्द्र कहे हैं। संक्षेप में वे इस प्रकार हैं- भवनपति देवों के-२०, व्यंतर देवों के-३२, ज्योतिषी देवों के-२ और वैमानिक देवों के 10 इन्द्र हैं, यो कुल 20+32+2+ 10-64 इन्द्र होते हैं / आगमानुसार ज्योतिषी देवों में असंख्य इन्द्र होते हैं तथापि जाति रूप से या अपेक्षा विशेष से गिनती की अपेक्षा आगम में ही इन्द्रों की यह 64 संख्या कही जाती है / 64 इन्द्रों के नाम यहाँ इस प्रकार दर्शाये गये हैंभवनपतिदेवों के बीस इन्द्र :- भवनपति की असुरकुमार आदि दस जातियाँ है, उन दशों जातियों में उत्तर दिशावर्ती और दक्षिण दिशावती दो-दो इन्द्र होने से कुल बीस इन्द्र होते हैं, यथा- (1-2) चमरेन्द्र-बलीन्द्र [106