________________ आगम निबंधमाला क्या सिद्धांत है ? क्या समाचारी का हेतु रहा है या अन्य कोई भ्रम आदि है ? इसको अपनी बुद्धिबल से समझना होता है। कभी सच्ची जिज्ञासा भी व्यक्ति को विशेष पात्र साबित कर देती है। इसके उपरांत अपने ज्ञानबल से सामने वाले व्यक्ति के भविष्य संबंधी परिणाम का विचार करके भी व्यवहार किया जाता है। स्वयं गौतम स्वामी चार ज्ञान के धारक और चौदह पूर्वी थे। अत: उदक मुनि की पात्रता वे समझते थे। शास्त्रोक्त वचन उपरांत भी व्यवहार कृत्यों में व्यक्ति की विचक्षणता अनुसार अनेक सत्ता-अधिकार स्वतः सिद्ध होते हैं / जिनशासन में बहुश्रुत विद्वान बुद्धिमान श्रमणों को ऐसे अधिकार हों इसमें कोई संदेह नहीं है / इसी कारण गौतमस्वामी को उदकमुनि से चर्चा करने में भगवान महावीर की स्वीकृति भी लेनी आवश्यक नहीं हुई। श्री भगवती सूत्र शतक 9 उद्दे.३३ अनुसार स्वयं भगवान महावीर स्वामी ने विनय व्यवहार वंदन आदि नहीं करके आकर खडे होते ही सीधे प्रश्न खडे करने वाले गांगेय अणगार को अनेक भंग संख्यामय प्रश्नों का विस्तृत उत्तर दिया था / वास्तव में उस समय की परिस्थिति ऐसी ही विचित्र बनी हुई थी कि गौशालक ने भी चौवीसवें तीर्थंकर होने का चतुर्विध संघ का माहोल तथा आठ महा प्रतिहार्य, अतिशय आदि बना रखे थे। पार्श्वनाथ भगवान के शासन के साधुओं के समक्ष बड़ी उलझन खडी हो रही थी कि सच्चा कौन है ? किसे स्वीकार करना या नहीं? इसी शंका की स्थिति के कारण पार्श्वनाथ भगवान के साधु वंदन करने का निर्णय नहीं कर पाते थे / उदकमुनि तो अपनी जिज्ञासा का समाधान हेतु ही आये थे फिर भी उक्त उलझन के कारण वंदन करने के लिये उनकी आत्मा तत्पर नहीं बन शकी थी / ऐसी परिस्थिति को समझकर ही परम दिलावर स्वयं तीर्थंकर प्रभु एवं गणधर आदि श्रमण आगंतुक का तिरस्कार किये बिना सहज सरलता एवं निरभिमानता के साथ जिज्ञासु को समझने का प्रयत्न करते थे / पाठकों को यह उदारता और विचक्षणता समीक्षा करने योग्य है / निबंध-५० धर्म की प्राप्ति तथा धर्म के प्रकार जीव जब तक आरंभ और परिग्रह को समझ नहीं लेता है और | 104]