________________ आगम निबंधमाला (5) पुंडरीक राजा ने स्वतः ही वेश पहिनकर दीक्षा अंगीकार की। फिर विहार कर गुरु के पास पहुँच कर पुनः गुरु मुख से संयम ग्रहण किया और प्रथम बेले का पारणा गुरु आज्ञा से स्वयं ही लाए / वैराग्य की धारा वर्धमान थी इसलिए निरस रुक्ष आहार लाए / पैदल विहार का प्रसंग, तपस्या तथा अचानक नया जीवन परिवर्तन था / उस आहार से पेट में और शरीर में दारुण वेदना रात्रि में उत्पन्न हुई। अवसर जानकर स्वतः आजीवन अनशन ग्रहण किया एवं रात्रि में ही दिवंगत हो गये / सर्वार्थसिद्ध अनुत्तर विमान में 33 सागरोपम की उम्र के देव बने / कंडरीक भी प्रबल इच्छा से राजा बना और तीसरे दिन रात्रि में मरकर सातवीं नरक में तेतीस सागरोपम की उम्र का नैरयिक बना। (6) विषय और कषाय आत्मा के महान लुटेरे हैं, अनर्थों की खान है। आत्मगुणों के लिये अग्नि और डाकू का काम करने वाले हैं। विषय भोगों को विष और कषायों को अग्नि की उपमा आगम में दी गई है। विष स्वस्थ हृस्ट पुष्ट शरीर का क्षणभर में खात्मा कर देता है। अग्नि अल्प समय में ही सब कुछ भस्म कर देती है / इसी तरह ये विषय और कषाय अल्प समय में दीर्घकाल की आत्म साधना का सफाया कर देते हैं / विषयभोगों में अंधा बना मणिरथ, मदनरेखा के लिए छोटे प्रिय भाई की निरपराध हत्या कर देता है और स्वयं भी संयोगवश सांप के काट जाने से उसी दिन मर कर नरक में चला जाता है / निरंतर मासखमण की तपस्या करने वाला महातपस्वी भी यदि कषाय भावों में परिणत होता है तो वह बारंबार जन्म मरण करता है / -. सूय.अध्ययन-२, उद्देशक-१ // कषाय और विषय की तीव्रता वाले व्यक्ति चक्षुहीन नहीं होते हुए भी अंध कहे गये है, यथा- मोहांध, विषयांध, क्रोधांध आदि / उत्तराध्ययन अध्ययन-१९ में विषयभोगों को जहरीले और मीठे किंपाक फल की उपमा दी गई है / (7) इस अंतिम अध्ययन में कामभोगों का दारुण दुःखमय परिणाम और संयम का श्रेष्ठ आनंददायक परिणाम बताया गया है / निबंध-२९ ज्ञातासूत्र के 19 अध्ययनों का हार्द . (1) संसार भ्रमण के दुःखों की तुलना में संयम के कष्ट नगण्य है / 95