________________ आगम निबंधमाला (2) विगय और महाविगयों का प्रचुर मात्रा में सेवन भी मानस में विकार दशा को जागृत करने का निमित्त बनता है। इसी कारण शास्त्र में तपरहित विगय सेवन कर्ता को पापश्रमण कहा है / विगयजन्य संभवित विकार तप के आचरण से उपशमित हो सकता है, वह सुसाध्य होता है किंतु औषधजन्य विकार महा उन्मादकारी होता है। कुशल सेवानिष्ठ पंथक के महिनों के प्रयास से शैलक राजर्षि का उन्माद शांत हो सका था / किन्तु प्रस्तुत इस अध्ययन वर्णित कंडरीक मुनि का विकारोन्माद उसे पूर्णतः ले डूबा / तीन दिन के क्षणिक विनश्वर जीवन के लिये वर्षों की उनकी संयम तप की कमाई बरबाद हो गई / यह निकृष्टतम दर्जे का आत्म-दिवाला निकालने का दृष्टांत है / संयम में अस्थिर चित होने वाले साधकों के लिये यह दृष्टांत बहुत ही मार्मिक एवं अनुचिंतनीय है / साधक को चाहिए कि . उसने जिस वैराग्य से संयम ग्रहण किया है उसी को सदा स्मृतिपट पर रखकर उसे दृढ़तर करते रहना चाहिये / अनेक प्रकार की मानसिक बाधाओं को भी ज्ञान, वैराग्य और विवेक से दूर करते रहना चाहिये। (3) अल्पकाल की आसक्ति जीवों को महान गर्त में पटक देती है और किंचित् काल का वैराग्य उत्साह भी प्राणी को महान शिखर पर पहुँचा देता है / कंडरीक ने संयम त्याग कर दीर्घकाल तक इच्छित भोग आनंद भी नहीं पाया / केवल आसक्ति परिणामों से ही उसकी दुर्गति अवश्यंभावी हो गई / पुंडरीक राजा वैराग्यपूर्ण संयम जीवन केवल तीन दिन ही प्राप्त कर सका किन्तु उत्कृष्ट विरक्ति, उत्कृष्ट उत्साह से तीन दिन के संयम और एक बेले के तप से गुरु सांनिध्य में पहुँच कर आत्मकल्याण साध लिया / (4) यह जानकर मुमुक्षु आत्माओं को आसक्तिभाव को क्षण भर भी नहीं टिकने देना चाहिये और वैराग्यभाव जब कभी भी प्राप्त होवे उसका पूर्ण स्वागत कर जीवन में समाचरण कर लेना चाहिये / तीन दिन तो क्या एक घड़ी भर का वैराग्य और तयुक्त आचरण आत्मा का बेड़ा पार कर सकता है और क्षणभर की सफर की लापरवाही वर्षों की कमाई लुटेरों को लुटा देती है / / 94