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________________ आगम निबंधमाला मर्यादा के अयोग्य बावड़ी-बगीचा आदि बनवाने की भावना उत्पन्न दूसरे दिन पौषध समाप्त करके वह राजा के पास पहुँचा। राजा की अनुमति प्राप्त कर उसने एक सुन्दर बावड़ी बनवाई, बगीचे लगवाए और चित्रशाला, भोजनशाला, चिकित्साशाला तथा अलंकार शाला का निर्माण करवाया। बहुसंख्यक जन इनका उपयोग करने लगे और नंद मणियार की प्रशंसा करने लगे। अपनी प्रशंसा एवं कीर्ति सुनकर नंद बहुत हर्षित होने लगा। बावड़ी के प्रति उसके हृदय में गहरी आसक्ति हो गई / एक बार नंद के शरीर में एक साथ सोलह रोग उत्पन्न हो गए उसने एक भी रोग मिटा देने पर चिकित्सकों को यथेष्ट पुरस्कार देने की घोषणा करवाई / अनेकानेक चिकित्सक आए, भाँति-भाँति की चिकित्सा पद्धतियों का उन्होंने प्रयोग किया, मगर कोई भी सफल नहीं हो सका / अंत में नंद मणियार बावड़ी में आसक्ति के कारण आर्तध्यान से ग्रस्त होकर उसी बावड़ी में मेंड़क की योनि में उत्पन्न हुआ / वहाँ लोगों के मुख से बारंबार नंद मणियार की प्रशंसा सुनकर उसे जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हो गया / तब उसने अपने पूर्वभव के मिथ्यात्व के लिये पश्चात्ताप करके आत्मसाक्षी से पुनः श्रावक के व्रत अंगीकार किए। एक बार पुनः भगवान महावीर का राजगृह में समवसरण हुआ। उसे भी भगवान के आगमन का वृत्तात विदित हुआ / भक्तिभाव से प्रेरित होकर वह भगवान की उपासना के लिये रवाना हुआ / परंतु रास्ते में ही राजा श्रेणिक की सेना के एक घोड़े के पाँव के नीचे आकर कुचल गया / जीवन का अंत सन्निकट देखकर उसने अंतिम समय की विशिष्ट आराधना की और मृत्यु के पश्चात् देवपर्याय में उत्पन्न हुआ। उत्पन्न होते ही अवधि ज्ञान से जानकर वह भगवान के दर्शन करने आया / देवगति का आयुष्य पूर्ण होने पर वह महाविदेह क्षेत्र में मनुष्य भव प्राप्त कर, चारित्र अंगीकार करके मुक्ति प्राप्त करेगा। (1) इस अध्ययन में निरूपित उदाहरण से पाठकों को जो बोध दिया गया है, उसमें दो बातें प्रधान हं- 1. सदगुरु के समागम से आत्मगुणो की वृद्धि होती है / अतः सद्गुरु और सदज्ञान का समागम करते 86
SR No.004413
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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