________________ आगम निबंधमाला रहता है / सम्यग्दृष्टि जीव की यह व्यवहारिक कसौटी है / जो उसका आदर्श गुण है। (3) श्रावकपन किसी कुल में जन्म लेने से ही नहीं आ जाता है। यह जातिगत विशेषता भी नहीं है / प्रस्तुत सूत्र स्पष्ट निर्देश करता है कि श्रावक होने के लिये सर्वप्रथम वीतराग प्ररूपित तत्वस्वरूप पर श्रद्धा होनी चाहिए। (4) मनुष्य जब श्रावकपद को अंगीकार करता है, श्रावकवृत्ति स्वीकार कर लेता है, तब उसके आंतरिक जीवन में पूरी तरह परिवर्तन होने पर बाह्य व्यवहार में भी स्वतः परिवर्तन आ जाता है / उसका रहन-सहन, खान-पान आदि समस्त व्यवहार बदल जाते हैं / श्रावक मानो उसी शरीर में रहता हुआ नूतन जीवन प्राप्त कर लेता है / उसे समग्र जगत वास्तविक स्वरूप में दृष्टिगोचर होने लगता है / उसकी प्रवृत्ति भी तदनुकल हो जाती है। यह इस अध्ययन के सुबुद्धि मंत्री के जीवन से ज्ञात होता है। (5) इस सूत्र से राजा और उसके मंत्री के बीच किस प्रकार का संबंध प्राचीन काल में होता था अथवा होना चाहिए यह भी विदित होता है। निबंध-२५ मनुष्य भव में हारा, मेंडक भव में जीता व्यक्ति को धर्म प्राप्त कर लेने के बाद भी संत-समागम और जिनवाणी का ज्ञान प्राप्त करते रहना चाहिये / संत-समागम के बिना अल्पज्ञानी साधक कभी कहीं भी, किन्हीं भी विचारों में भटक सकते हैं और अपनी मौलिकता खो बैठते हैं / इस तथ्य की पुष्टी हेतु यहाँ नंद मणियार श्रावक की जीवन घटना दर्शाई गई है। .. राजगृही नगरी में नंदमणियार भगवान महावीर स्वामी का व्रतधारी श्रावक था। कालान्तर से उसकी अन्य लोगो से संगति विचारणा होने के कारण रुचि में परिवर्तन होने लगा। वह संत-समागम से भी वंचित होने लगा। एक बार गर्मी के समय उसने पौषधशाला में अष्टमभक्त पौषध युक्त तपश्चर्या की / भूख-प्यास से वह पीड़ा पाने लगा। पौषध / 85 /