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________________ आगम निबंधमाला अवस्था का दृष्टांत, प्रधान ने राजा को सन्मार्ग पर लगाने के लिये, क्रियान्वित विधि से प्रस्तुत किया है। राजा और प्रधान का घटना क्रम इस प्रकार है चंपानगरी में जितशत्रु राजा का प्रधान सुबुद्धि था / एक समय राजा, प्रधान और अनेक प्रतिष्ठित जन एक स्थान पर भोजन कर रहे थे / भोजन अत्यंत स्वादिष्ट होने की राजा ने खूब प्रशंसा की / अन्य लोगों ने भी उसी स्वर में भोजन को सराहा / सुबुद्धि प्रधान जिनमत का ज्ञाता एवं श्रमणोपासक भी था / वह मौन रहा / राजा ने आग्रह दृष्टि से अमात्य तरफ देखकर भोजन की प्रशंसा की। प्रधान को बोलना जरूरी हो गया / वह बोला कि- राजन् ! मुझे इसमें कुछ भी विस्मय नहीं है / पुद्गलों क परिणमन के अनेक प्रकार होते हैं / शुभ प्रतीत होने वाले पुद्गल निमित्त पाकर अशुभ रूप में और अशुभ पुद्गल शुभ रूप में परिणत होते रहते हैं / अतः इस प्रकार के पुद्गल परिणमन में मुझे कुछ आश्चर्यकारक नहीं लगता / राजा को उसका कथन भाया तो नहीं किंतु वह चुप रहा / पुनः कभी. राजा, प्रधान आदि नगर के बाहर अशुचि युक्त दुगधित जल वाली खाई के पास से निकल रहे थे / सभी ने वस्त्र से नाक, मुँह ढ़के, दुर्गंध से घबराने लगे। राजा ने पानी की अमनोज्ञता का कथन किया। अन्य लोगों ने भी दुहराया किंतु प्रधान तटस्थ रहा। राजा के द्वारा पूछने के जैसा हाव-भाव करने पर प्रधान ने वही पुद्गल का उत्तर दुहराया / इस बार राजा से न रहा गया / उसने कहा- सुबुद्धि! तुम किसी दुराग्रह के शिकार बन रहे हो। तुम दूसरों को ही नहीं खुद को भी भ्रम में डाल रहे हो / सुबुद्धि ने सुनकर मौन रखी और मन में विचार किया कि राजा को किसी उपाय से सन्मार्ग पर लाना चाहिये / इस प्रकार विचार करके उसने उसी खाई का पानी मंगवाया और विशिष्ट विधि से 49 दिनों में उसे अत्यंत शुद्ध और स्वादिष्ट बनाया। यह स्वादिष्ट पानी जब राजा के यहाँ भेजा गया और उसने पीया तो उस पर वह मुग्ध हो गया। पानी वाले सेवक से पूछने पर उसने कहा- यह पानी अमात्य जी के यहाँ से आया है / अमात्य ने निवेदन कियास्वामिन् ! यह वही खाई का पानी है, जो आपको अत्यंत अमनोज्ञ प्रतीत हुआ था। | 83
SR No.004413
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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