________________ आगम निबंधमाला किसी भी उद्देश्य से की गई हिंसा या पाप प्रवृत्ति कभी भी मोक्षदायक शुद्ध पवित्र धर्म का बाना नहीं ले सकती है। अत: अपनी आत्मा में यह घोष गुंजायमान रखना चाहिए कि सब जीव रक्षा यही परीक्षा, धर्म उसको जानिए / जहाँ होत हिंसा नहीं है संशय, अधर्म वही पहिचानिए // इसी कारण से शुचि धर्मी चोक्खा परिव्राजिका मल्लिकुमारी से पराजित और निरुत्तर हो गई थी। अफसोस यह है कि वीतराग धर्म में भी हिंसा धर्म(मूर्ति पूजा) प्रकट हो गया है यह खून से खून की शुद्धि करना ही है। (11) यदि किसी के जीवन को सुधारने की भावना हो तो उसके प्रति अपने हृदय में किंचित भी तिरस्कार की भावना या घृणा भावना नहीं होनी चाहिए एवं परिपूर्ण आत्मीयता होनी चाहिए / साथ ही अपने सामर्थ्य का ज्ञान भी होना चाहिए / उसके बाद विवेक पूर्वक किया गया प्रयत्न असंभव से कार्य को भी संभव और सफल बना सकता है / यथा- मल्लिकुमारी का विवाह की इच्छा वाले छः राजाओं को एक साथ प्रतिबोध देकर सन्मार्ग में लगा देना / इस प्रकार आगम अध्ययन के साथ साथ उस पर चारित्र निर्माण का तुलनात्मक चिंतन किया जाय; जीवन में उतारा जाय, तो विशेष लाभ हासिल किया जा सकता है / (12) मल्लिनाथ भगवान की निर्माण तिथी का वर्णन करते हुए सूत्र में कहा गया है कि ग्रीष्म ऋतु का पहला महिना, दूसरा पक्ष, चैत्र सुदी चतुर्थी के दिन 500 साधु और 500 साध्वियों के साथ भगवान मोक्ष पधारे / यहाँ यह ध्यान देने योग्य बात है कि महीने का प्रथम पक्ष वदी कहा दूसरा पक्ष सुदी कहा। इससे यह सिद्ध होता है कि जैन सिद्धांत के अनुसार अमांत महिने नहीं होते किन्तु महीना पूर्णिमांत होता है / ऋतु भी पूर्णिमांत होती है / अतः वर्तमान प्रचलित अमांत मान्यता जैन आगम सम्मत नहीं है, यह सुस्पष्ट है / निबंध-२४ राजा और मंत्री का जीवन-व्यवहार इस में पानी के शुभ-अशुभ पुद्गलों के परिवर्तित होने की 82