________________ आगम निबंधमाला (5) मल्लिकुमारी ने झूठा कवल पुतली में नहीं डाला किन्तु एक कवल जितना शुद्ध आहार ही पुतली में डाला था / बंद होने से पूरा सूख नहीं पाने से उसमें दुर्गंध पैदा हुई थी। किन्तु समुर्छिम मनुष्य या त्रस जीवों आदि की उत्पत्ति नहीं होवे ऐसे ज्ञान और विवेक से प्रवृत्ति की थी। केवल दुर्गंध होने मात्र से ही उनका प्रयोजन था। विशाल भवन, जालगृह एवं पुतली आदि के आरंभजन्य निर्माण प्रवृत्ति के साथ आहार के दुर्गंध की प्रवृत्ति के आरंभ का कोई स्वतंत्र अधिक महत्त्व नहीं रह जाता है अर्थात् भवन निर्माण के हेतुभूत पृथ्वी, पानी, अग्नि आदि के विशाल आरंभ के सामने आहार के दुर्गन्धित होने का आरंभ नगण्य समझना चाहिये / वह अपेक्षाकृत इतना अधिक महत्त्व देने जैसा नहीं है। (6) परीक्षा की घड़िय जब आती है तब बहुत गंभीर और सहनशील बनना चाहिए / उस समय भ्रमित लोकनिंदा, उलाहना और कष्टों की उपेक्षा करना आवश्यक हो जाता है / यथा- अरणक श्रावक ने जब धर्म परीक्षार्थ देव उपद्रव आया हुआ जान लिया तब उसने उक्त गुण को धारण कर निर्भय और दृढ मनोबल के साथ काम लिया। तभी मानव की शांति और धैर्य के आगे दानव की विकराल शक्ति विफल हुई और देव नत मस्तक हो गया। (7) परिग्रह की मर्यादा वाला श्रावक अचानक प्राप्त संपत्ति अपने पास नहीं रखता है यथा- अरणक श्रावक ने देव से प्राप्त कुंडल की जोड़ी दोनों राजाओं को भेंट स्वरूप दे दी। (8) संपन्न श्रावक अपने आसपास में रहने वाले सामान्य परिस्थिति वाले जन समुदाय को व्यापार में अनेक प्रकार से सहयोग करे तो यह उनकी एक प्रकार की अनुकंपा और सहवर्ती लोगों के साथ सहानुभूति का व्यवहार होता है। यह श्रावक का व्यवहारिक आदर्श जीवन है / ऐसे व्यवहार से धर्म और धर्मीजन प्रशंसित होते हैं / जीवों के प्रति उपकार होता है / अपने कार्य में अन्य का भी काम हो जाता है। यह व्यवहारिक श्रावक जीवन की स्टेज है / व्यवहारिक जीवन से आगे बढ़कर निवृत साधना वाला श्रावक फिर स्वयं भी इन प्रवृत्तियों से मुक्त हो जाता है / उसका लक्ष्य आत्मसाधना का प्रमुख हो जाता है। उसके लिये सामाजिक और व्यवहारिक जिम्मेदारियाँ तथा कर्तव्य 80