________________ आगम निबंधमाला निबंध-२३. मल्लीभगवती के अध्ययन से प्राप्त ज्ञेय तत्त्व (1) धर्म और तप में भी सरलता गुण का होना नीतांत आवश्यक है। अति होशियारी या कपट भाव तनिक भी क्षम्य नहीं है / विशाल तप साधना काल में अल्पतम माया से महाबल के जीव को मिथ्यात्व की प्राप्ति और स्त्रीत्व का बंध हो गया था। तीर्थंकर बन जाने पर भी जिसका फल अवश्यंभावी रहा / (2) मित्रों के साथ कभी भी अविश्वास धोखा नहीं करना चाहिए। यदि साथ में संयम लेने की वार्ता कर चुके हो तो भी समय आने पर नहीं मकरना चाहिए। यथा- महाबल के 6 मित्र राजा होते हुए भी उसके साथ दीक्षित हुए एवं आत्मकल्याण साधा / (3) मन एवं इच्छा पर काबू नहीं हो तो व्यक्ति अपने प्राप्त पूर्ण सुखों में भी असंतुष्ट हो जाता है और अप्राप्त की लालसा में गोते खाता है / यथा- छहों राजा राज्य ऋद्धि राणियों के परिवार से संपन्न थे फिर भी मल्लिकुमारी का वर्णन सुनकर उनमें अनुरक्त हुए और युद्ध करने चले; यह असंतोष वृत्ति है.। ज्ञानी होने का फल यह है कि अपने प्राप्त सामग्री में संतोष मानते हुए क्रमशः उसके त्याग भावना की वृद्धि करना चाहिए। (4) मोह का नशा यदि अधिक चढ़ा हो तो वह प्रेम और उपदेश से एक बार नहीं मिट सकता किन्तु एक बार मन के प्रतिकूल भयंकर परिस्थिति आने पर और फिर कुशल उपदेष्टा का संयोग मिले तो परिवर्तित हो सकता है, यथा- तेतलिपुत्र प्रधान का दृष्टांत आगे १४वें अध्ययन में है। इसी आशय से छहों राजा को एक साथ प्रतिबोध देने के लिये अर्थात् उनके महामोह नशे को शांत करने के लिये अवधि ज्ञान से जानकर मल्लिकुमारी ने उचित उपाय निकाल लिया था तदनुसार ही जालगृह और अपने आकृति की पूतली बनाई और कुछ समय अपन भोजन का एक कवल जितना भाग उसमें डाला / प्रसंग उपस्थित होने पर ढ़क्कन को उघाड़ कर दुस्सह दुर्गंध से आकुल व्याकुल बने हुए राजाओं को बोध और ज्ञान देकर साथ ही पूर्व भव बताकर विरक्त बनाया एवं भोग से योग की तरफ अग्रसर किया। L79