________________ आगम निबंधमाला .. उस समय वातावरण में अनुराग के स्थान पर विराग छा गया। उसी समय राजकुमारी ने दीक्षा अंगीकार करने का संकल्प किया। तीर्थंकरों की परंपरा के अनुसार वार्षिक दान देने के पश्चात् मल्लीकुमारी ने प्रव्रज्या अंगीकार कर ली। जिस दिन दीक्षा अंगीकार की उसी दिन उन्हें केवलज्ञान-दर्शन की प्राप्ति हो गई। तत्पश्चात् जितशत्रु आदि छहों राजाओं ने भी दीक्षा अंगीकार कर ली / अंत में सभी ने मुक्ति प्राप्त की। भगवती मल्ली तीर्थंकर ने भी चैत्र शुक्ला चतुर्थी के दिन निर्वाण प्राप्त किया। ज्ञातव्य :- (1) कुंभ राजा और प्रभावती राणी ने श्रावक व्रत स्वीकार किए / (2) छह राजाओं ने संयम अंगीकार किया और चौदह पूर्वी होकर अंत में मोक्ष गये / (3) मल्लीनाथ तीर्थंकर के 28 गणधर थे। (4) वे उन्नीसवें तीर्थंकर थे, 25 धनुष के ऊँचे थे / 100 वर्ष घर में रहे, 55 हजार वर्ष की संपूर्ण उम्र थी। (5) पूर्व भव में महाविदेह क्षेत्र में महाबल के भव में 84 लाख वर्ष तक संयम का पालन किया था। कुल उम्र वहाँ 84 लाख पूर्व की थी। (6) वहाँ तीर्थंकर नाम कर्म का उपार्जन किया था / तीर्थंकर नाम कर्म उपार्जन के 20 बोल इस प्रकार है- (1) अरिहंत (2) सिद्ध (3) जिन सिद्धांत (4) गुरु (5) स्थविर (6) बहुश्रुत (7) तपस्वी इन सात की भक्ति बहुमान गुण कीर्तन करने से (8) बारंबार ज्ञान में उपयोग करना (9) दर्शन शुद्धि (10) विनय (11) भावयुक्त प्रतिक्रमण (12) निरतिचार संयम व्रतों का पालन (13) अप्रमत्त जीवन (14) तपस्या (15) त्याग नियम या दान (16) अपूर्व ज्ञान ग्रहण (17) समाधि भाव प्रसन्न भाव में रहना या दूसरों को शाता उपजाना; (18) सेवा करना (19) श्रुत भक्ति (20) जिनशासन की प्रभावना करना / ___ इनमें से एक या अनेक बोल के सेवन में उत्कृष्ट रसायन, आत्म परिणाम होने पर तीर्थंकर नामकर्म का बंध होता है / इस बंध के बाद जीव तीसरे भव में अवश्य तीर्थंकर बनता है एवं मोक्ष प्राप्त करता है। / 78