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________________ आगम निबंधमाला निबंध-२० दीक्षार्थी के प्रति कृष्णवासुदेव का कर्तव्य द्वारिका नगरी में बाईसवें तीर्थंकर भगवान अरिष्टनेमि का पदार्पण हुआ / वासुदेवकृष्ण अपने विशाल परिवार के साथ प्रभु की उपासना करने और धर्मदेशना श्रवण करने पहुँचे / द्वारिका के नर-नारी भी गये / द्वारिका में थावच्चा नामक एक संपन्न गृहस्थ महिला थी। उसका इकलौता पुत्र थावच्चापुत्र के नाम से ही अभिहित होता था। वह भी भगवान की धर्म देशना श्रवण करने पहुँचा। धर्मदेशना सुनी और वैराग्य के रंग में रंग गया / माता ने बहुत समझाया, आजीजी की, किन्तु थावच्चापुत्र अपने निश्चय पर अटल रहा। अंत में विवश होकर माता ने दीक्षा महोत्सव करने का प्रस्ताव किया, जिसे उसने मौनभाव से स्वीकार किया। दीक्षा महोत्सव के लिये माता थावच्चा छत्र, चामर आदि मांगने कृष्ण महाराज के पास गई तो उन्होंने स्वयं अपनी ओर से महोत्सव मनाने का प्रस्ताव रखा। थावच्चापुत्र के वैराग्य की परीक्षा करने कृष्ण स्वयं उसके घर पर गए / सोलह हजार राजाओं के राजा अर्द्ध भरत क्षेत्र के अधिपति कृष्ण सहज रूप से थावच्चापुत्र के घर जा पहुँचना उनकी असाधारण महत्ता और निरहंकारिता एवं धार्मिकता का द्योतक है। श्रीकृष्ण ने थावच्चापुत्र को कहा कि तुम दीक्षा मत लो। मेरी छत्रछाया में तुम सुखपूर्वक रहो, तुम्हें कोई भी दुःख कष्ट नहीं होगा। मैं तुम्हारी सब बाधा पीड़ा संकटों से तुम्हारा निवारण करूँगा, केवल तुम्हारे ऊपर से निकलती हुई हवा को रोक नहीं सकता, उसके सिवाय कोई भी तुम्हें तनिक भी कष्ट नहीं पहुँचा सकेगा। अतः तुम यह दीक्षा का विचार छोड़कर मेरी बाहुछाया में मनुष्य संबंधी सुखभोग करते हुए रहो / थावच्चा पुत्र ने कहा कि हे देवानुप्रिय ! यदि आती हुई मेरी मृत्यु को रोकने में आप समर्थ हो एवं आने वाले बुढ़ापे को आप निवारण करने में सक्षम हो सकते हो तो मैं आपकी छत्रछाया म सुखभोग करते हुए रह सकता हूँ / कृष्ण वासुदेव ने कहा कि हे | 70
SR No.004413
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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