________________ आगम निबंधमाला के शब्दों में यह धर्म का मूल है। उक्त कथानक में हाथी जैसे एक.पशु ने दया भाव के निमित्त से ही संसार भ्रमण के मार्ग की जगह मोक्ष मार्ग को प्राप्त कर लिया / हृदय कि सच्ची अनुकंपा और उस पर दृढ़ रहने का यह परिणाम है / (8) आत्मा अनंत शाश्वत तत्व है। रागद्वेष आदि विकारों से ग्रस्त होने के कारण वह विभिन्न अवस्थाओं में जन्म मरण करता है। एक अवस्था से दूसरी अवस्था में जाना ही संसरण या संसार कहलाता है / कभी आत्मा अधोगति के पाताल में तो कभी उच्चगति के शिखर पर पहुँच जाती है / इस उतार चढ़ाव का मूल कारण स्वयं आत्मा ही है। संयोग मिलने पर आत्मा जब अपने सच्चे स्वरूप को समझ लेता है तब अनुकूल पुरुषार्थ कर विशुद्ध स्वरूप को प्राप्त करके शाश्वत सुखों का स्वामी बन जाता है / मेघकुमार के जीवन में यही घटित हुआ / हाथी से मानव, फिर मुनि, तत्पश्चात देव बना और क्रमशः परमात्म पद को प्राप्त करेगा / (9) संयम से मेघमुनि के चित्त का उखड़ जाना, यह इस अध्ययन का एक प्रमुख विषय है, भगवान के द्वारा पूर्व भव सुना कर संयम में स्थिर करने के प्रेरक विषय का मूल निमित्त भी यही है ।अतः अध्ययन का नाम मेघकुमार न होकर उक्खित्तणाय(उत्क्षिप्त ज्ञात)रखा गया है। निबंध-१९ धन्य सार्थवाह के जीवन से प्राप्त शिक्षा-तत्त्व शास्त्र में दृष्टांत रूप कथानक विशाल भी हो सकते हैं किंतु उसमें कोई एक छोटा सा प्रेरणा स्थल लक्षित रहता है। इस कथानक में भी सत्रकार ने संयमशील साधक अपने शरीर का संरक्षण किस वृत्ति से, किस भावों से करे, इस तत्त्व को समझने के लिये संकेत किया जिस तरह धन्य सेठ ने एक परिस्थिति को पार करने के लिये चोर को आहार दिया था किंतु किसी भी प्रकार का अनुराग या आनंद उस आहार देने में धन्य के मानस में तनिक भी नहीं था / क्यों कि वह / 68