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________________ आगम निबंधमाला के समान) भिक्षु की 11 प्रतिमाओं की भी आराधना करी / गुणरत्न संवत्सर तप भी किया / फिर विविध तप मासखमण पर्यंत करते रहे। अंत में स्कंधक के समान ही शरीर हाडपिंजर सा बन गया / फिर राजगृही के बाहर विपुल पर्वत पर पादपोपगमन संथारा किया। पर्वत पर चढना एवं संथारा विधि का वर्णन स्कंधक के समान समझना / एक महीने के संथारे से 12 वर्ष की कुल दीक्षा पर्याय से आयुष्य पूर्ण कर विजय नामक अनुत्तर विमान में 33 सागरोपम की स्थिति में उत्पन्न हुए / वहाँ से महाविदेह क्षेत्र में मानव भव प्राप्त कर तपसंयम का आराधन कर मुक्ति प्राप्त करेंगे / निबंध-१८ मेघकुमार अध्ययन से प्राप्त शिक्षा तत्त्व (1) जीव ने अनेक भवों में विविध वेदनाएँ सहन की है / अतः इस मानव भव को पाकर धर्म साधना करने में कष्टों से कभी भी नहीं धबराना चाहिए / . (2) पशु या मनुष्य किसी को भी अपने पूर्व जन्मों का स्मरण हो सकता है। (3) पुनर्जन्म एवं कर्म सिद्धांत की सम्यक् आस्था रखनी चाहिये / (4) दुख की घड़ियों में भी विवेकपूर्ण आवश्यक कर्तव्यों में च्युत नहीं होना चाहिये / जैसे कि मेघमुनि संयम में अस्थिरचित्त हो जाने पर भी अचानक ही कोई प्रवृत्ति न करते हुए, भगवान की सेवा में विनय पूर्वक निवेदन करने के लिये पहुँच गये / (5) किसी को भी मार्गच्युत हुआ जान कर योग्य उपायों से कुशलता पूर्वक पुनः सदगुणों में उसे तत्पर बनाने का प्रयत्न करना चाहिये। किंतु निंदा, अवहेलना, तिरस्कार आदि निंदनीय प्रवृत्तियों का आचरण कदापि नहीं करना चाहिये / (6) अपनी भूलों का पश्चात्ताप करके उन्हें शीघ्र सुधार लेना चाहिये किंतु छिपाने का प्रयत्न कदापि नहीं करना चाहिये / (7) अनुकंपा और दया भाव यह आत्मोन्नति का एक उत्तम गुण है। इसे समकित का चौथा लक्षण कहा गया है। प्रसिद्ध कवि तुलसीदासजी / 67
SR No.004413
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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