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________________ आगम निबंधमाला हे मेघ ! तूं भी उस मैदान में पहुँचकर स्थान प्राप्त कर खड़ा हो गया। मैदान खचाखच भर गया था। धक्का -धक्की हो भी रही थी / तूंने खाज करने के लिये एक पाँव ऊपर उठाया। उसी समय धक्के खाते खाते एक खरगोस तेरे उस पाँव की जगह में आकर बैठ गया / तूं वापिस पाँव रखने लगा तो खरगोश को देखकर उसकी अनुकंपा के लिये तूने पाँव अधर ही रखा / 2-3 दिन से दावानल शांत हुआ। सभी पशु-पक्षी वहाँ से निकल गये / तूंने भी चलने के लिये पाँव नीचे रखने का प्रयत्न किया किंतु पाँव तीन दिन में अकड़ जाने से हे मेघ ! तूं धड़ाम से नीचे गिर पड़ा / तब तेरे शरीर में घोर वेदना उत्पन्न हुई / तीन दिन उस वेदना को वेदता हुआ 100. वर्ष की आयु पूर्ण करके श्रेणिक राजा की धारणी राणी की कुक्षी में पुत्र रूप में तूं उत्पन्न हुआ। हे मेघ ! पशु योनि में एक छोटे प्राणी के लिये तूंने कितना अपार कष्ट तीन दिन सहन किया एवं पूर्व भव में शत्रु हाथी के प्रहार से उत्पन्न महावेदना को सात दिन सहन किया, ऐसे ही भवोभव में जीव अनादि से महादःखों को भुगतता आ रहा है। अब मानव भव पाकर तँ युवावस्था में स्वस्थ समर्थ शरीर संपन्न होकर सर्व दु:खमुक्त कराने वाली संयम यात्रा में थोड़े से कष्टों को सम्यक् सहन नहीं कर पाया / इस अपनी पूर्वभव की घटना को भगवान के मुख से सुनकर मेघ मुनि को शुभ परिणामों से, प्रशस्त अध्यवसायों से एवं लेश्याओं की विशुद्धि से जाति स्मरण ज्ञान उत्पन्न हुआ / वह स्वयं प्रत्यक्ष अपने ही ज्ञान से भगवान से सुना वैसा ही अपना पूर्व भव देखने-जानने लगा। इस प्रकार भगवान के द्वारा पूर्वभव स्मरण कराने से उसका वैराग्य पुनः कई गुणा बढ़ गया / वह संयम भावों में स्थिर हो गया / आनंदाश्रुओं युक्त होकर भगवान से वंदन नमस्कार कर पुनः दीक्षा देने का निवेदन किया और सदा के लिये दो आंखों की रक्षा के अतिरिक्त संपूर्ण शरीर संयम एवं संयमियों की सेवा में न्योछावर कर दिया / इस प्रकार भगवान ने मेघ मुनि को सहज ही संयम भावों में पुनः स्थिर कर दिया था / मेघमुनि ने क्रमश: ग्यारह अंगों का अध्ययन किया / उपवास आदि मासखमण पर्यंत तप से आत्मा को भावित करते हुए संयम म विचरण करने लगे। यथासमय उन्होंने(भगवती श०२ में वर्णित स्कंधक |66
SR No.004413
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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